SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम-अध्ययन एवं पदार्थों का श्रद्धानः ___आचार्य कुन्दकुन्द के कथनानुसार आगम अध्ययन के बिना श्रमण स्व और पर की समझ प्राप्त नहीं कर सकता है। एकाग्रचित्तता भी आगम के स्वाध्याय से उत्पन्न होती है। जीव-अजीव पदार्थों का ज्ञान आगम से ही होता है। आगमअध्ययन से सम्यग्दर्शन उत्पन्न होता है उसी से संयमाचरण भी होता है। आगमअध्ययन के साथ पदार्थों में श्रद्धा और श्रद्धा के साथ संयम का आचरण मोक्ष के लिये आवश्यक है। शुभोपयोगी व शुद्धोपयोगी श्रमणः आचार्य कुन्दकुन्द ने श्रमणों का विभाजन दो प्रकार से किया है। वे कहते हैं: आगम में श्रमण दो प्रकार के कहे गये हैं- शुद्ध में संलग्न अर्थात् शुद्धोपयोगी और शुभ में संलग्न अर्थात् शुभोपयोगी। सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान का जन-शिक्षण, शिष्यों का ग्रहण, उनका विकास तथा जिनेन्द्र देव की पूजा/ भक्ति का सर्वोपयोगी उपदेश- ये सब शुभोपयोगी श्रमणों की चर्या है (48)। शुभोपयोगी श्रमण जिन मार्गानुयायी गृहस्थ और श्रमणों के लिये अपेक्षा-रहित अनुकंपापूर्वक उपकार करते हैं (51)। शुभोपयोगी श्रमण रोग से अथवा भूख से अथवा प्यास से अथवा कष्ट से लदे हुए पीड़ित श्रमण को देखकर अपनी शक्तिपूर्वक सहायता करने के लिए उसको अंगीकार करता है (52)। रोगी, पूज्य, बाल (आयु में छोटे), वृद्ध (आयु में बड़े) श्रमणों की वैयावृत्ति के लिये सांसारिक व्यक्तियों से शुभ और उचित भी वार्तालाप श्रमणों के लिए अस्वीकृत नहीं है (53)। अशुभोपयोग से मुक्त श्रमण जो शुद्ध में संलग्न अथवा शुभ में संलग्न हैं वे मनुष्य-समूह को संसार रूपी सागर से पार उतारते हैं। उन श्रमणों में जो अनुरक्त होता है, वह सर्वोत्तम अवस्था को प्राप्त करता है (60)। प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार
SR No.004160
Book TitlePravachansara Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy