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________________ 11. पयदम्हि समारद्धे छेदो समणस्स कायचे?म्हि। जायदि जदि तस्स पुणो आलोयणपुव्विया किरिया।।। छेदपउत्तो समणो समणं ववहारिणं जिणमदम्हि। आसेज्जालोचित्ता उवदिटुं तेण कायव्वं ।। पयदम्हि (पयद) भूकृ 7/1-3/1 अनि जागरूक द्वारा समारद्धे (समारद्ध) भूकृ 7/1 अनि प्रारंभ की गई छेदो (छेद) 1/1 संयम-भंग समणस्स (समण) 6/1+3/1 श्रमण द्वारा कायचेट्टम्हि [(काय)-(चेट्ठा) 7/1] शरीर-क्रिया में जायदि (जाय) व 3/1 अक उत्पन्न होता है जदि अव्यय तस्स (त) 6/1-+3/1 सवि उसके द्वारा अव्यय आलोयणपुब्विया [(आलोयणा आलोयण)- आलोचना की (पुब्विया) 1/1 वि] किरिया (किरिया) 1/1 क्रिया यदि प्राचीन 1. कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-135) कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम -प्राकृत-व्याकरणः 3-134) समासगत शब्दों में स्वर हस्व के स्थान पर दीर्घ और दीर्घ के स्थान पर ह्रस्व हो जाया करते हैं। यहाँ आलोयणा' का 'आलोयण' हुआ है। (प्राकृत-व्याकरण, पृष्ठ 21) प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार (21)
SR No.004160
Book TitlePravachansara Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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