________________
1.
एवं पणमिय सिद्धे जिणवरवसहे पुणो पुणो समणे। पडिवज्जदु सामण्णं जदि इच्छदि दुक्खपरिमोक्खं।। आपिच्छ बंधुवग्गं विमोचिदो गुरुकलत्तपुत्तेहिं। आसिज्ज णाणदंसणचरित्ततववीरियाया।।
पणमिय
अव्यय
और (पणम) संकृ
प्रणाम करके (सिद्ध) 2/2
सिद्धों को [(जिणवर)-(वसह) 2/2 वि] जिनवरों में प्रमुख
सिद्धे
जिणवरवसहे' पुणो पुणो समणे
अव्यय
बार-बार
पडिवज्जदु
सामण्णं
जदि
(समण) 2/2 , श्रमणों को (पडिवज्ज) विधि 3/1 सक अंगीकार करे (सामण्ण) 2/1
श्रमणता को अव्यय
यदि (इच्छ) व 3/1 सक चाहता है [(दुक्ख)-(परिमोक्ख) 2/1] दुखों से मुक्ति (आपिच्छ) भूकृ 1/1 अनि पूछ लिया
इच्छदि दुक्खपरिमोक्खं आपिच्छ
1.
2.
वसह- समास के अन्त में होने से यहाँ वसह का अर्थ है प्रमुख। यहाँ आपिच्छ' के स्थान पर आपिच्छदो' करने से छंद-भंग होता है। अतः यहाँ 'आपिच्छ' का प्रयोग हुआ है। यहाँ भूतकालिक कृदन्त का कर्तृवाच्य में प्रयोग किया गया है।
प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार
(11)