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________________ 74. णिद्धत्तणेण दुगुणो चदुगुणणिद्धेण बंधमणुभवदि। लुक्खेण वा तिगुणिदो अणु बज्झदि पंचगुणजुत्तो।। णिद्धत्तणेण दुगुणो चदुगुणणिद्धेण बंधमणुभवदि (णिद्धत्तण) 3/1 स्निग्धता में (दुगुण) 1/1 वि दो अंशवाला [(चदुगुण) वि-(णिद्ध) 3/1] चार अंशवाली स्निग्धता से [(बंध)+ (अणुभवदि)] (बंध) 2/1 बंध को अणुभवदि (अणुभव) प्राप्त होता है व 3/1 सक (लुक्ख) 3/1 रूक्षता में अव्यय तथा [(ति)-(गुणिद) 1/1 वि] तीन अंशवाली (अणु) 1/1 परमाणु (बज्झदि) व कर्म 3/1अनि बाँधा जाता है [(पंच)-(गुण)-(जुत्त) पाँच अंश-सहित भूकृ 1/1 अनि] लुक्खेण. 111 तिगुणिदो *अणु (मूलशब्द) बज्झदि पंचगुणजुत्तो अन्वय- णिद्धत्तणेण दुगुणो चदुगुणणिद्धेण बंधमणुभवदि वा लुक्खेण पंचगुणजुत्तो अणु तिगुणिदो बज्झदि । . .. अर्थ- स्निग्धता में दो अंशवाला (परमाणु) (उसकी) चार अंशवाली स्निग्धता से बँध को प्राप्त होता है तथा रूक्षता में पाँच अंश-सहित परमाणु तीन अंशवाली (रूक्षता से) बाँधा जाता है। 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137) प्राकृत में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है। (पिशलः प्राकृत भाषाओंका व्याकरण, पृष्ठ 517) प्रवचनसार (खण्ड-2) (89) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004159
Book TitlePravachansara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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