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72. एगुत्तरमेगादी अणुस्स णिद्धत्तणं च लुक्खत्तं । परिणामादो भणिदं जाव अणंतत्तमणुभवदि । |
गुत्तरगा
अणुस्स णिद्धत्तणं
च
लुक्खत्तं परिणामादो
भणिदं
जाव
1.
[(एग ) + (उत्तरं ) + (एग ) + (आदी ) ] [ ( एग) वि- ( उत्तरं ) अव्यय
(एग ) वि - ( आदि) 1 / 1]
(अणु) 6 / 1 (द्धित्तण) 1 / 1
अव्यय
.
( लुक्खत्त) 1 / 1 (परिणाम) 5 / 1
(भण भणिद) भूकृ 1/1
अव्यय
प्रवचनसार (खण्ड-2 )
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एक (अंश) में ऊपर
एक (अंश) से आरम्भ
अणतत्तमणुभवदि [ (अणंतत्तं) + (अणुभवदि)]
अणंतत्तं (अनंतत्त) 2/1 अणुभवदि (अणुभव) व 3/1 सक
अन्वय- अणुस्स परिणामादो णिद्धत्तणं च लुक्खत्तं एगुत्तरमेगादी भणिदं जाव अनंतत्तं अणुभवदि ।
परमाणु का
स्निग्धता
और
रूक्षता
परिणमन स्वभाव के
अर्थ- परमाणु के परिणमन स्वभाव के कारण (जो ) स्निग्धता और रूक्षता एक (अंश) से आरंभ (होती है) (वह) (तब तक) एक (अंश) में ऊपर कही गई (है) जब तक (वह) अनंतता को प्राप्त करती है। (जैसे बकरी, गाय, भैंस, ऊँटनी अथवा घी वगैरह में स्निग्धता के उत्तरोत्तर भेद है और धूलि, राख, रेत आदि (वस्तुओं के क्रम में) वस्तुओं में रूक्षता के उत्तरोत्तर भेद है। इस प्रकार स्निग्ध- रूक्ष गुण के अनंत भेद हैं।
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कारण
कही गई
जब तक
'कारण' व्यक्त करनेवाले शब्दों में पंचमी का प्रयोग होता है।
. (प्राकृत-व्याकरण, पृष्ठ 42)
अनंतता को प्राप्त करती है
(87)
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