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67. असुहोवओगरहिदो सुहोवजुत्तोण अण्णदवियम्हि।
होज्जं मज्झत्थोऽहं णाणप्पगमप्पगं झाए।।
असुहोवओगरहिदो' [(असुह)+(उवओगरहिदो)]
[(असुह) वि-(उवओग)- अशुभोपयोग से रहित/
(रहिदो) भूकृ 1/1 अनि] के बिना सुहोवजुत्तो
[(सुह)+(उवजुत्त)] [(सुह) वि-(उवजुत्त) शुभ में संलग्न भूकृ 1/1 अनि] अव्यय
नहीं .. अण्णदवियम्हि [(अण्ण) सवि-(दविय) 7/1] अन्य विषय में होज्जं (होज्ज) व 1/1 अक हूँ मज्झत्थोऽहं [(मज्झत्थो)+ (अहं)]
मज्झत्थो (मज्झत्थ) 1/1 वि मध्यस्थ
अहं (अम्ह) 1/1 स . मैं णाणप्पगमप्पगं [(णाणप्पगं)+(अप्पगं)]
णाणप्पगं (णाणप्पग) 2/1 वि ज्ञानात्मक अप्पगं (अप्पग) 2/1 आत्मा (झाए) व 1/1 सक अनि ध्यान करता हूँ
झाए
अन्वय- अहं असुहोवओगरहिदो सुहोवजुत्तो ण अण्णदवियम्हि मज्झत्थो होज्जं णाणप्पगमप्पगं झाए।
अर्थ- मैं अशुभोपयोग से रहित (हूँ)/के बिना (हूँ), शुभ में संलग्न नहीं (हूँ), अन्य विषय (निंदा-प्रशंसादि) में मध्यस्थ हूँ (और) ज्ञानात्मक आत्मा का ध्यान करता हूँ।
1.
समास के अन्त में करण के साथ रहित का अर्थ होता है-'के बिना'
(82)
प्रवचनसार (खण्ड-2)
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