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________________ 11. पाडुब्भवदि य अण्णो पज्जाओ पज्जओ वयदि अण्णो । दव्वस्स तं पि दव्वं णेव पणटुं ण उप्पण्णं।। पाडुब्भवदि उत्पन्न होती है और कोई पर्याय अण्णो पज्जाओ पज्जओ वयदि (पाडुब्भव) व 3/1 अक अव्यय (अण्ण) 1/1 सवि (पज्जाअ) 1/1 (पज्जाअ-पज्जअ) 1/1 (वय) व 3/1 अक (अण्ण) 1/1 सवि (दव्व) 6/1 . अव्यय (दव्व) 1/1 अव्यय (पणट्ठ) भूकृ 1/1 अनि अव्यय (उप्पण्ण) भूकृ 1/1 अनि पर्याय नष्ट होती है कोई द्रव्य की अण्णो दव्वस्स तं पि दव्वं तो भी णेव द्रव्य न ही नष्ट हुआ पणहूँ उप्पण्णं उत्पन्न हुआ ___ अन्वय- दव्वस्स अण्णो पज्जाओ पाडुब्भवदि य अण्णो पज्जओ वयदि तं पि दव्वं ण उप्पण्णं णेव पणटुं । ___ अर्थ- (जब किसी) द्रव्य की कोई पर्याय उत्पन्न होती है और (उसी द्रव्य की) कोई पर्याय नष्ट होती है, तो भी (वह) द्रव्य न उत्पन्न हुआ न ही नष्ट हुआ (वह ध्रौव्य है)। 1. यहाँ छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु ‘पज्जाअ' का ‘पज्जअ' किया गया है। प्रवचनसार (खण्ड-2) (25) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004159
Book TitlePravachansara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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