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105. णिहदघणघादिकम्मो पच्चक्खं सव्वभावतच्चण्ह।
णेयंतगदो समणो झादि कमढे असंदेहो।।
णिहदघणघादिकम्मो [(णिहद) भूक अनि-(घन)वि- प्रगाढ़ घातिया कर्म
(घादि) वि-(कम्म) 1/1] नष्ट कर दिये गये पच्चक्खं (पच्चक्खं) अव्यय प्रत्यक्ष रूप से
द्वितीयार्थक अव्यय सव्वभावतच्चण्हू [(सव्व) सवि-(भाव)- समस्त पदार्थ के
(तच्चण्ह) 1/1 वि] स्वरूप का जाननेवाला णेयंतगदो [(णेय) विधिकृ.अनि- .. जानने योग्य (पदार्थों (अंतगद) भूकृ 1/1 अनि ] का) अंत पा लिया
गया समणो (समण) 1/1
श्रमण झादि
(झा) व 3/1 सक ध्यान करता है कमढें [(कं)-(अट्ठ)] .
कं (क) 2/1 सवि किस . .
अट्ठ (अट्ठ) 2/1 पदार्थ असंदेहो (असंदेह) 1/1 वि संदेह-रहित
अन्वय- णिहदघणघादिकम्मो पच्चक्खं सव्वभावतच्चण्हू णेयंतगदो असंदेहो समणो कमढें झादि।
अर्थ- (जिसके द्वारा) प्रगाढ़ घातियाकर्म नष्ट कर दिये गये हैं), (जो) प्रत्यक्ष रूप से समस्त पदार्थों के स्वरूप को जाननेवाला (है), (तथा) (जिसके द्वारा) जानने योग्य (पदार्थों का) अंत पा लिया गया (है) (वह) संदेहरहित श्रमण किस पदार्थ का ध्यान करता है?
1.
आत्म-स्वरूप को आच्छादित करनेवाले कर्म।
(120)
प्रवचनसार (खण्ड-2)
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