________________
76. सपरं बाधासहियं विच्छिण्णं बंधकारणं विसमं।
जं इंदियेहिं लद्धं तं सोक्खं दुक्खमेव तहा॥
सपरं
बाधासहियं
विच्छिण्णं
बंधकारणं विसमं
[(स)-(पर) 1/1 वि] पर की अपेक्षा
रखनेवाला [(बाधा)-(सहिय) अड़चनों सहित .. भूकृ 1/1 अनि] (विच्छिण्ण) भूकृ 1/1 अनि हस्तक्षेप/समाप्त किया
· गया [(बंध)-(कारण) 1/1]. (कर्म) बंध का कारण (विसम) 1/1 वि
कष्टदायक अव्यय
चूँकि (इन्दिय) 3/2
इन्द्रियों से .. (लद्ध) भूकृ 1/1 अनि प्राप्त अव्यय
इसलिए (सोक्ख) 1/1 [(दुक्खं)+ (एव)] दुक्खं (दुक्ख) 1/1 एव (अ)= ही अव्यय
उस (पूर्वोक्त) रीति से
इंदियेहिं लद्धं
सोक्खं दुक्खमेव
सुख
दुःख
तहा
अन्वय- जं इंदियेहिं लद्धं सपरं बाधासहियं विच्छिण्णं बंधकारणं विसमं तं तहा सोक्खं दुक्खमेव।
अर्थ- चूँकि इन्द्रियों से प्राप्त (सुख) पर की अपेक्षा रखनेवाला (पराश्रित), अड़चनों सहित, हस्तक्षेप/समाप्त किया गया, (परेशानी में डालनेवाले) कर्मबंध का कारण, (और) (अन्त में) कष्टदायक (होता) (है) इसलिए उस (पूर्वोक्त) रीति से (ऐसा) सुख दुःख ही (है)।
(88)
प्रवचनसार (खण्ड-1)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org