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75. ते
ते पुण उदिण्णता दुहिदा तण्हाहिं विसयसोक्खाणि ।
इच्छंति
अणुभवंति य आमरणं दुक्खसंतत्ता ।।
न
पुण
उदिता
दुहिदा
तहाहिं
विसयसोक्खाणि
इच्छंति
अणुभवंति
य
आमरणं
दुक्खसंतत्ता
(त) 1/2 सवि
अव्यय
[(उदिण्ण) भूक अनि
(AUT) 1/2]
(दुहिद) 1/2 वि
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( तण्हा) 3 / 2
[ ( विसय) - (सोक्ख) 2/2]
(इच्छ) व 3/2 सक
(अणुभव) व 3 / 2 सक
अव्यय
( आ-मरण) 1/1
[(दुक्ख ) - (संतत्त)
भूक 1/2 अनि]
वे
फिर भी
उत्पन्न हुई
तृष्णाएँ
दुःखी
तृष्णाओं के कारण
विषय - सुखों को
चाहते हैं
भोगते हैं
तथा
अन्वय- उदिण्णतण्हा ते तण्हाहिं दुहिदा दुक्खसंतत्ता पुण
मरण-तक
दुःखों से अत्यन्त
पीड़ित
विसयसोक्खाणि इच्छंति य आमरणं अणुभवंति ।
अर्थ- (जिनमें) तृष्णाएँ उत्पन्न हुई हैं, वे तृष्णाओं के कारण दुःखी (रहते हैं) । दुःखों से अत्यन्त पीड़ित (भी) (होते हैं), फिर भी (इन्द्रिय) - विषय सुखों को चाहते हैं तथा मरण - तक ( उनको ) भोगते हैं।
प्रवचनसार ( खण्ड - 1 )
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