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63. मणुयासुरामरिंदा अहिदुदा इन्दियेहिं सहजेहिं।
असहंता तं दुक्खं रमंति विसएसु रम्मेसु।।
मणुयासुरामरिंदा
[(मणुय)+(असुर)+(अमरिंदा)] . [(मणुय)-(असुर)- मनुष्य, असुर और (अमरिंद) 1/2] देवों के राजा (अहिद्दुद) भूकृ 1/2 अनि दुःख का अनुभव किये
अहिद्दुदा
इन्दियेहिं सहजेहिं असहंता
इन्द्रियों से प्रकृतिदत्त सहन न करते हुए
उस
(इन्दिय) 3/2 (सहज) 3/2 वि . (अ-सह) वकृ 1/2 (त) 2/1 सवि (दुक्ख) 2/1 (रम) व 3/2 अक (विसय) 7/2 (रम्म) 7/2 वि
दुक्खं
रमंति
दुःख को रमण करते हैं विषयों में रमणीय
विसएसु
रम्मेसु
अन्वय- सहजेहिं इन्दियेहिं अहिहुदा मणुयासुरामरिंदा तं दुक्खं असहंता रम्मेसु विसएसु रमंति।
- अर्थ- प्रकृतिदत्त इन्द्रियों से (अतृप्तिरूपी) दुःख का अनुभव किये हुए मनुष्य, असुर और देवों के राजा उस दुःख को सहन न करते हुए (इन्द्रिय योग्य) रमणीय विषयों में रमण करते हैं।
प्रवचनसार (खण्ड-1)
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