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46.
जदि सो सुहो व असुहो ण हवदि आदा सयं सहावेण। संसारो वि ण विज्जदि सव्वेसिं जीवकायाणं।।
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असुहो
नहीं होता
हवदि
आदा
आत्मा
अव्यय (त) 1/1 सवि (सुह) 1/1 वि अव्यय (असुह) 1/1 वि अव्यय (हव) व 3/1 अक (आद) 1/1 अव्यय (सहाव) 3/1 (संसार) 1/1 अव्यय अव्यय (विज्ज) व 3/1 अक (सव्व) 6/2 सवि (जीवकाय) 6/2
सयं
सहावेण संसारो
अपने स्वभाव से संसार
विज्जदि सव्वेसिं जीवकायाणं
नहीं विद्यमान होता है समस्त जीवसमूहों के
अन्वय- जदि सो आदा सयं सहावेण सुहो व असुहो ण हवदि सव्वेसिं जीवकायाणं संसारो वि ण विज्जदि।
अर्थ- यदि वह आत्मा अपने (चले आ रहे) स्वभाव से (ही) शुभ या अशुभ नहीं होता (तो) समस्त जीवसमूहों के संसार (जन्म-मरण) भी विद्यमान नहीं होता।
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प्रवचनसार (खण्ड-1)
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