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45. पुण्णफला अरहंता तेसिं किरिया पुणो हि ओदइया।
मोहादीहिं विरहिया तम्हा सा खाइग त्ति मदा।।
पुण्णफला अरहता तेसिं किरिया पुणो
क्रिया
और
ओदइया
मोहादीहिं
विरहिया
[(पुण्ण)-(फल) 5/1] पुण्य के प्रभाव से (अरहंत) 1/2
अरिहंत (त) 6/2 सवि
उनकी (किरिया) 1/1 अव्यय अव्यय (ओदइय (स्त्री)-ओदइया) औदयिकी 1/1 वि [(मोह)+ (आदीहिं)] [(मोह)-(आदि) 3/2] मोह आदि से (विरहिय (स्त्री)-विरहिया) रहित भूकृ 1/1 अनि अव्यय .
इसलिये (ता) 1/1 वि . [(खाइगा)+ (इति)]
खाइगा (खाइग (स्त्री)-खाइगा) क्षायिकी 1/1 वि इति (अ) = ही . (मद (स्त्री)-मदा)
मानी गई भूकृ 1/1 अनि
तम्हा सा खाइग त्ति
वह
मदा.
अन्वय- अरहंता पुण्णफला पुणो तेसिं किरिया मोहादीहिं विरहिया हि ओदइया तम्हा सा खाइग त्ति मदा।
अर्थ- अरिहंत पुण्य के प्रभाव से (होते हैं) और उनकी क्रिया मोहादि से रहित ही औदयिकी (कर्मोदय से निष्पन्न/कर्मक्षय के निमित्त उत्पन्न) (होती है), इसलिए वह (क्रिया) क्षायिकी ही (कर्म का क्षय करनेवाली) मानी गई (है)।
प्रवचनसार (खण्ड-1)
(57)
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