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43. उदयगदा कम्मंसा जिणवरवसहेहिं णियदिणा भणिया।
तेसु विमूढो रत्तो दुट्टो वा बंधमणुभवदि।।
उदयगदा कम्मंसा
जिणवरवसहेहिं
णियदिणा
भणिया तेसु
[(उदय)-(गद)भूकृ 1/2 अनि] उदय में आये हुए [(कम्म)+ (अंसा)] [(कम्म)-(अंस) 1/2] कर्मों के खंड [(जिणवर)-(वसह) 3/2] जिनवर अरिहंतों
द्वारा [(णियद)+ (एइणा)] [(णियद) वि-(एअ) 3/1] इस रूप में नियत (भणिय→भणिया) भूकृ 1/2 कहे गये (त) 7/2 सवि (विमूढ) 1/1 भूकृ अनि मोहित हुआ (रत्त) 1/1 भूकृ अनि राग-युक्त हुआ (दुट्ठ) 1/1 भूक अनि द्वेष-युक्त हुआ अव्यय [(बंध)+(अणुभवदि)] बंधं (बंध) 2/1
कर्मबंध को अणुभवदि (अणुभव) भोगता है व 3/1 सक
उनसे
विमूढो
रत्तो
वा .
बंधमणुभवदि
.
अणुभवाउ
___ अन्वय- उदयगदा कम्मंसा णियदिणा जिणवरवसहेहिं भणिया तेसु विमूढो रत्तो वा दुट्ठो बंधमणुभवदि।
- अर्थ- (कर्म-फल के रूप में) उदय में आये हुए कर्मों के खंड इस रूप में नियत (हैं)। जिनवर अरिहंतों द्वारा (इस रूप में कर्मों के खंड) कहे गये (हैं)। उन (कर्मखंडों) से मोहित हुआ, राग-युक्त या द्वेष-युक्त हुआ (व्यक्ति) कर्मबंध को भोगता है।
1.
णियदिणा = (णियद+एइणा) = णियदेइणा = (णियदे+इणा)= णियदिणा। यहाँ तृतीया विभक्ति का प्रयोग सप्तमी अर्थ में हुआ है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137) यहाँ सप्तमी विभक्ति का प्रयोग तृतीया अर्थ में हुआ है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137)
3.
प्रवचनसार (खण्ड-1)
(55)
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