________________
42. परिणमदिणेयमटुंणादा जदिणेव खाइगं तस्स।
णाणं ति तं जिणिंदा खवयंतं कम्ममेवुत्ता।।
परिणमदि णेयमहें
णादा जदि
... ज्ञाता
* *
णेव
खाइगं
णाणं ति
(परिणम) व 3/1 सक रूपान्तरित करता है [(णेयं)+ (अट्ठ)] . णेयं (णेय) विधिकृ 2/1 अनि ज्ञेय अहं (अट्ठ) 2/1 __ पदार्थ को (णादु) 1/1 वि अव्यय
यदि । अव्यय
नहीं (खाइग) 1/1
क्षायिक (त) 6/1 सवि
उसका [(णाणं)+ (इति)] णाणं (णाण) 1/1 इति (अ) = इसलिए
इसलिए (त) 2/1 सवि
उसे (जिणिंद) 1/2
जिनेन्द्रदेवों ने (खवयंत) वकृ 2/1 अनि विसर्जन करता हुआ [(कम्म) + (एव)+(उत्ता)] कम्मं (कम्म) 2/1 कर्म को एव (अ) = ही. उत्ता (उत्त) भूकृ 1/2 अनि कहा
ज्ञान
*
जिणिंदा खवयंतं कम्ममेवुत्ता'
अन्वय- जदि णादा णेयमटुं परिणमदि तस्स णाणं खाइगं णेव ति जिणिंदा तं कम्मं खवयंतं एव उत्ता।
अर्थ- यदि ज्ञाता ज्ञेय पदार्थ को रूपान्तरित करता है (तो) उसका ज्ञान क्षायिक (कर्मों के क्षय से उत्पन्न) नहीं (होता है)। इसलिए जिनेन्द्रदेवों ने उसे कर्म का विसर्जन करता हुआ (व्यक्ति) ही कहा (है)। 1. यहाँ भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग कर्तृवाच्य में किया गया है।
(54)
प्रवचनसार (खण्ड-1)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org