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13. अइसयमादसमुत्थं विसयातीदं अणोवममणंतं । अव्वुच्छिण्णं च सुहं सुद्धुवओगप्पसिद्धाणं ।।
अइसयमादसमुत्थं [ (अइसयं) + (आदसमुत्थं)]
अइस (अइसय) 1 / 1 वि
[ ( आद) - (समुत्थ) 1 / 1 वि]
[(विसय) + (अतीदं)]
[ ( विसय) - (अतीद) 1 / 1 वि] इन्द्रिय-विषयों से परे
[(अणोवमं)+(अणंतं)]
विसयातीदं
अणोवममणतं
अव्वच्छिणं
च
सुहं
अणोवमं (अणोवम) 1/1 वि अनुपम
अनंत
अणंतं (अणंत) 1/1 वि
( अव्वच्छिण्ण) 1 / 1 वि
अव्यय
(सुह) 1 / 1
सुद्धुवओगप्पसिद्धाणं [(सुद्ध)+(उवओगप्पसिद्धाणं)]
[(सुद्ध) वि- (उवओग)
(प्यसिद्ध) भूक 6 / 2 अनि ]
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-
श्रेष्ठ
आत्मा से उत्पन्न
सतत
और
सुख
अन्वय- सुद्धवओगप्पसिद्धाणं सुहं अइसयमादसमुत्थं विसयातीदं
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शुद्धोपयोग से विभूषित
(आत्माओं) का
अणोवममणंतं च अव्वुच्छिण्णं ।
अर्थ- शुद्धोपयोग से विभूषित (आत्माओं) का सुख श्रेष्ठ, आत्मा से उत्पन्न, इन्द्रिय-विषयों से परे, अनुपम, अनंत और सतत ( होता है ) ।
प्रवचनसार ( खण्ड - 1 )
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