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7.
चारित्तं खलु धम्मो धम्मो जो सो समो त्ति णिद्दिवो । मोहक्खोहविहीणो परिणामो अप्पणो हु समो।।
चारित्तं (चारित्त) 1/1
चारित्र . खलु अव्यय
वास्तव में धम्मो
(धम्म) 1/1 धम्मो
(धम्म) 1/1 (ज) 1/1 सवि __. जो
(त) 1/1 सवि __. वह समो त्ति [(सम)+ (इति)] समो (सम) 1/1
समत्व इति (अ) = ही
ही
. णिट्टिो (णिद्दिट्ठ) भूकृ 1/1 अनि कहा गया : . मोहक्खोहविहीणो [(मोह)-(क्खोह)- आत्मविस्मृति तथा
(विहीण) भूकृ 1/1 अनि] व्याकुलता रहित .. परिणामो (परिणाम) 1/1
परिणाम अप्पणो (अप्प) 6/1
आत्मा का अव्यय
निश्चय ही समो
(सम) 1/1 .
समत्व
अन्वय- खलु चारित्तं धम्मो जो धम्मो सो समो त्ति णिहिट्ठो समो हु मोहक्खोहविहीणो अप्पणो परिणामो।
अर्थ- वास्तव में चारित्र धर्म (है)। जो धर्म (है) वह समत्व ही कहा गया (है)। समत्व निश्चय ही आत्मविस्मृतिरहित (मूर्छारहित) तथा व्याकुलतारहित (हर्ष, शोक आदि द्वन्द्वात्मक प्रवृत्ति से रहित) आत्मा का परिणाम (भाव) (है)।
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प्रवचनसार (खण्ड-1)
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