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5.
तेसिं विसुद्धदंसणणाणपहाणासमं समासेज्ज। उवसंपयामि सम्मं जत्तो णिव्वाणसंपत्ती।।
उनके
पहाणासमं
विशुद्ध-दर्शन, ज्ञान प्रधान-अवस्था को
तेसिं (त) 6/2 सवि विसुद्धदसणणाण- [(विसुद्धदंसणणाणपहाण)+
(आसमं)] {[(विसुद्ध) वि-(दंसण)- (णाण)-(पहाण) वि
(आसम) 2/1] वि} समासेज्ज
(समासेज्ज) संकृ अनि उवसंपयामि (उवसंपय) व 1/1 सक सम्मं . . (सम्म) 2/1 जत्तो
अव्यय णिव्वाणसंपत्ती [(णिव्वाण)-(संपत्ति)
- 1/1]
उपलब्ध करके
स्वीकार करता हूँ समत्व को क्योंकि निर्वाण की प्राप्ति
अन्वय-तेसिं विसुद्धदंसणणाणपहाणासमं समासेज्ज सम्म उवसंपयामि जत्तो णिव्वाणं संपत्ती।
अर्थ-......उनके ही (समान) विशुद्ध-दर्शन (सम्यग्दर्शन), ज्ञान (सम्यग्ज्ञान) प्रधान-अवस्था को उपलब्ध करके (मैं) समत्व (सम्यक् चारित्र) को स्वीकार करता हूँ, क्योंकि (उससे ही) निर्वाण की प्राप्ति (होती है)।
प्रवचनसार (खण्ड-1)
(15)
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