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92. जो णिहदमोहदिट्ठी आगमकुसलो विरागचरियम्हि । अब्भुट्टिदो महप्पा धम्मो त्ति विसेसिदो समणो ।।
जो
णिहदमोहदिट्ठी
आगमकुसलो
विरागचरियम्हि
अब्दो
महप्पा
धम्मो ति
विसेसिदो
समणो
(104)
(ज) 1 / 1 सवि
[(हिद) भूक अनि
- (मोह) - (दिट्ठि) 1/1]
[ ( आगम) - (कुसल ) 1 / 1 वि]
[(विराग) - (चरिय) 7/1]
(अब्भुदि) भूकृ 1 / 1 अनि
( महप्प ) 1 / 1
[(धम्मो ) + (इति)]
धम्मो (धम्म) 1 / 1
इति (अ) = और
(विसेसिद) भूकृ 1 / 1 अनि
(समण) 1 / 1
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जो
नष्ट की गई
.मोह-दृष्टि
आगम में कुशल
वीतराग चारित्र में
उद्यत
महात्मा
अन्वय- णिहदमोहदिट्ठी जो आगमकुसलो विरागचरियम्हि अब्भुट्टिदो
महप्पा समणो धम्मो त्ति विसेसिदो ।
अर्थ - ( जिसके द्वारा ) मोह-दृष्टि नष्ट की गई (है), जो आगम में कुशल (है) और (जो) वीतराग चारित्र में उद्यत (है), (वह) महात्मा (है), श्रमण (है) और वह (ही) इन विशेषणों से युक्त ( चलता-फिरता) 'धर्म' ( है ) ।
धर्म
और
विशेषणों से युक्त
श्रमण
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प्रवचनसार (खण्ड-1)
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