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91. सत्तासंबद्धेदे सविसेसे जो हि णेव सामण्णे।
सद्दहदि ण सो समणो तत्तो धम्मो ण संभवदि।।
सत्तासंबद्धेदे
[(सत्तासंबद्ध)+ (एदे)] [(सत्ता)-(संबद्ध)(एद) 2/2] सवि (स-विसेस) 2/2 वि
. सत्ता से युक्त
इन पर विशेष सत्ताओं से युक्त
सविसेसे
हि
निश्चय ही नहीं श्रमण अवस्था में श्रद्धा करता है
सामण्णे सद्दहदि
नहीं
(ज) 1/1 सवि अव्यय अव्यय (सामण्ण) 7/1 (सद्दह) व 3/1 सक अव्यय (त) 1/1. सवि (समण) 1/1 (त) 5/1 सवि (धम्म) 1/1 अव्यय (संभव) व 3/1 अक
वह श्रमण
सो समणो तत्तो धम्मो
.
.
उससे
नहीं घटित होता है
संभवदि
अन्वय- जो सामण्णे सत्तासंबद्धदे सविसेसे णेव सद्दहदि सो हि . समणो ण तत्तो धम्मो ण संभवदि।
अर्थ- जो श्रमण अवस्था में (सामान्य) सत्ता से युक्त (और) विशेष सत्ताओं से युक्त इन (द्रव्यों) पर श्रद्धा नहीं करता है, वह निश्चय ही श्रमण नहीं है, उससे धर्म घटित नहीं होता है।
1.
'श्रद्धा' के योग में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग होता है।
प्रवचनसार (खण्ड-1)
(103)
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