________________
87. दव्वाणि गुणा तेसिं पज्जाया अटुसण्णया भणिया।
तेसु गुणपज्जयाणं अप्पा दव्व त्ति उवदेसो।।
द्रव्य
दव्वाणि गुणा तेसिं
गुण
उनकी पर्याय
पज्जाया
अट्ठसण्णया भणिया
उनमें
(दव्व) 1/2 (गुण) 1/2 (त) 6/2 सवि (पज्जाय) 1/2 [(अट्ठ)-(सण्णया) 3/1 अनि] पदार्थ नाम से (भण-भणिय) भूकृ 1/2 कही गई (त) 7/2 सवि [(गुण)-(पज्जाय-पज्जय)' गुण और पर्यायों का 6/2] (अप्प) 1/1
आत्मा [(दव्व) (इति)] दव्व (दव्व) 1/1
द्रव्य इति (अ) = इस प्रकार इस प्रकार (उवदेस) 1/1
उपदेश
गुणपज्जयाणं
अप्पा
*दव्व त्ति (मूलशब्द):
उवदेसो
.
- अन्वय- दव्वाणि गुणा तेसिं पज्जाया अट्ठसण्णया भणिया तेसु गुणपज्जयाणं अप्पा दव्व त्ति उवदेसो।
अर्थ- द्रव्य, गुण (और) उनकी पर्यायें पदार्थ नाम से कही गई हैं)। उनमें गुण और पर्यायों का आत्मा (आधार) द्रव्य है, इस प्रकार उपदेश (है)। . 1. यहाँ छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु ‘पज्जाय' का ‘पज्जय' किया गया है।
प्राकृत में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है। (पिशलः प्राकृत भाषाओंका व्याकरण, पृष्ठ 517)
प्रवचनसार (खण्ड-1)
.
(99)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org