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मूर्तियों के नीचे धर्मचक्र और सिंह बने हैं तथा उनके नीचे एक पृथक् कोष्ठक में वाहन और आयुध सहित इन शासन देवियों का स्पष्ट अंकन हुआ है। यदि यह चौबीसी पूरी उपलब्ध होती तो निश्चित ही मूर्तिशास्त्र की इस विधा का एक सबल और जीवन्त प्रमाण यहां उपलब्ध हुआ होता। इन छोटी-छोटी प्रतिमाओं के पार्श्व में तथा ऊपर भी अन्य छोटी तीर्थंकर मूर्तियां अंकित है तथा छत्र के ऊपर गजाभिषेक और फिर शिखर का प्रतीक देकर हर मूर्ति को एक स्वतंत्र मंदिर का प्रतीक बनाया गया है। 58
विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के पुरातत्व संग्रहालय की महत्त्वपूर्ण जैन प्रतिमाओं का विवरण इस प्रकार है:
तीर्थंकर स्वामी की भग्न प्रतिमा : लगभग 10वीं शताब्दी की यह भग्न प्रतिमा बहुत ही सुन्दर तथा मूर्तिकला के क्षेत्र में बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। यह संग्रहालय की सबसे सुन्दर जैन प्रतिमा है। प्रतिमा में तीर्थंकर के मस्तक तथा ऊपर का ही भाग शेष है। इसमें महापुरुष के लक्षण भी प्रत्यक्ष दिशाई देते हैं। भगवान के चेहरे के दोनों ओर नृत्य करते हुए यक्ष तथा यक्षिणी है। इनके ऊपर सवार सहित दो हाथी बहुत ही सुन्दर बनाये गये हैं। दोनों हाथियों के मध्य में दो पुरुष वाद्य बजाते हुए भी अंकित किये गये हैं।
तीन देवियों की प्रतिमाएं : श्याम पाषाण की बनी हई ये तीनों देवी प्रतिमाएं खड़ी हुई दिखाई गई है। खड़ी हुई स्थिति मूर्ति विज्ञान में समभंग मुद्रा कहलाती है। मध्यवाली प्रतिमा अभिवादन मुद्रा में है। इस स्त्री प्रतिमा में अलंकरण हार, तथा अन्य मालाओं का उपयोग किया गया है। इनकी विशेषता यह है कि इसमें परमारकालीन तिथि में उन स्त्रियों का नाम लिखा है, वे नाम ये हैं:- (1) वंदी पद्मा (2) साहणिसावित्री (3) वंदी माऊ। इन नामों से ऐसा प्रतीत होता है कि मध्य स्त्री वह है जिसने मंदिर बनवाया हो तथा आसपास की स्त्रियां उसकी बन्दी होगी ऐसा श्री वाकणकर का मत है।
चक्रेश्वरी देवी की प्रतिमा : इस प्रतिमा में देवी के आठ हाथ बनाये गये हैं। प्रो.भट्टाचार्य के अनुसार दिगम्बर जैन धर्म में चक्रेश्वरी देवी के आठ हाथ बतलाये जाते हैं तथा श्वेताम्बर मतानुसार चक्रेश्वरी देवी के बारह या चार हाथ बताये जाते हैं। अतः यह प्रतिमा दिगम्बर मानी जाती है। प्रतिमा के पांच हाथ भग्न हो चुके हैं। शेष तीनों हाथों में देवी चक्र लिये हुए हैं। देवी पद्मासन मुद्रा में गरूड़ के ऊपर विराजमान है। गरूड़ मानवाकृति में प्रदर्शित है। चक्रेश्वरी देवी के मस्तक के ऊपर तीर्थंकर को पद्मासन तथा ध्यान मुद्रा में दिखा गया है। एक वृक्ष और दो वानरों का अंकन भी सुन्दर बन पड़ा है। प्रतिमा के उप पीठ के दोनों ओर
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