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जैन प्रतिमा है। इस प्रतिमा की ऊंचाई 13/4 फुट है और चौड़ाई 334 फुट है। प्रतिमा अपूर्ण-सी जान पड़ती है उस पर टांकी के चिह स्पष्ट परिलक्षित है। जान पड़ता है कि शिल्पी ने उसे गढ़ने के पश्चात् नहीं सुधारा। शिल्पी मूर्ति पर सफाई नहीं कर सका। यहां के लोग इसे सतमासिया कहते हैं।49
नवीं से 12वीं शताब्दी के मध्य बने जैन मंदिर बड़ोहपठारी में प्राप्त होते हैं। यहां चौबीस तीर्थंकरों की प्रतिमाएं हैं। 50
मन्दसौर जिले के खोर नामक स्थान पर एक प्रतिमा मिली है जिसके विषय में लिखा है कि अभी कुछ दिनों पहले खोर में एक जैन प्रतिमा प्राप्त हुई है जो अखण्ड है और काले पाषाण की है। कुछ लोगों का मत है कि उक्त मूर्ति शांतिनाथ तीर्थंकर की है और कुछ उस मूर्ति को बुद्ध की मानते हैं परन्तु नागेश मेहता का मत है कि यह जैन प्रतिमा ही है। शांतिनाथ की मूर्तियां प्रायः काले पाषाण की ही बनी प्राप्त होती है, बुद्ध भगवान की नहीं। फिर मूर्ति के परिकर आदि विधान से वह जैन प्रतिमा ही सिद्ध होती है।
राजगढ़ जिले के ग्राम कालीपीठ में कुछ जैन मूर्तियां मिली है जिनका विवरण इस प्रकार है
खेत में पड़ी हुई जैन मूर्तियों में से एक मूर्ति 118 इंच लम्बी, 32 इंच चौड़ी तथा 18 इंच मोटी है। दूसरी दोनों भुजाएं खण्डित है। इसके दोनों ओर ढाई फीट ऊंची दो चंवरधारियों की मूर्तियां हैं। मूर्ति के ऊपरी भाग में दो हाथी भी अंकित है। महावीर की दूसरी मूर्ति 70 इंच लम्बी तथा समीप में पड़े हुए स्तम्भावशेष उस युग की याद दिलाते हैं जबकि हिन्दु, बौद्ध तथा जैन मंदिरों में कोई अन्तर नहीं रह गया था।
___ कालीपीठ में जैन प्रभुत्व 12 सदी के अंत तक तो रहा ही होगा। एक जैन मूर्ति के पैर की आधार शिला पर अंकित शिलालेख से पता चलता है कि संवत् 1189 ई. सन 1132 में सवालाख साहू शोणदेव नामक व्यक्ति ने उस मूर्ति तथा मंदिर का निर्माण कराया होगा।
पश्चिमी नेमाड़ के ऊन नामक स्थान पर एक राज्याधिकारी द्वारा खुदाई करते समय वहां कुछ पुरानी नींव व बहुत बड़ी मत्रा में जैन मूर्तियां निकली थी। उनमें से एक मूर्ति पर विक्रम संवत् 1182 या 1192 अर्थात ईस्वी सन 1125 या 1135 का लेख खुदा हुआ है। जिसके द्वारा यह विदित होता है कि यह मूर्ति आचार्य रत्नकीर्ति के द्वारा निर्मित की गई थी। यहां के ग्वालेश्वर मंदिर में दिगम्बर मूर्तियां हैं। मध्यवाली प्रतिमा साढ़े बारह फुट के लगभग ऊंची है। कुछ मर्तियों पर लेख भी उत्कीर्ण है जिसके अनुसार वे वि.सं.1263 अर्थात् ई.सन् 1206 में भेंट की गई थी।
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