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- जैन प्रतिमा की तीसरी विशेषता गन्धर्व साहचर्य है। गुप्तकालीन प्रतिमाएं एक नवीन परम्परा की उन्नायिका है। यक्षों के अतिरिक्त शासन देवताओं का भी उनमें समावेश किया गया है। धर्मचक्र मुद्रा का भी यहीं से श्रीगणेश हुआ है।
तीर्थंकरों के जो विशेष चिह निर्धारित हैं, वे जो यक्ष, यक्षिणी प्रत्येक तीर्थकर के अनुचर ठहराये गये व जिन चैत्यवृक्षों का उनके केवल ज्ञान से सम्बन्ध स्थापित किया गया उसका विवरण इस प्रकार है:क्रं. तीर्थंकर नाम चिह चैत्यवृक्ष यक्ष यक्षिणी 1 ऋषभनाथ बैल न्यग्रोथ , गोबदन चक्रेश्वरी 2 अजितनाथ गज सप्तपर्ण महायक्ष रोहिणी 3 संभवनाथ अश्व शाल त्रिमुख प्रज्ञप्ति 4 अभिनंदननाथ बंदर सरल यक्षेश्वर . वज्रश्रृंखला 5 सुमतिनाथ चकवा प्रियंगु तुम्बुख वज्रांकुश 6 पद्मप्रभु कमल प्रियंगु मातंग अप्रतिचक्रेश्वरी 7 सुपार्श्वनाथ नंद्यावर्त शिरीष - विजय पुरुषदत्ता 8 चन्द्रप्रभु अर्द्धचन्द्र नागवृक्ष अजित मनोवेगा 9 पुष्पदन्त मकर अक्ष(बहेड़ा) ब्रह्म काली 10 शीतलनाथ स्वस्तिक धूलि मालिवृक्ष) ब्रह्मेश्वर ज्वालामालिनी 11 श्रेयांसनाथ गेंडा पलाश, कुमार महाकाली 12 वासुपूज्य . भेंसा तेंदू षणमुख गौरी 13 विमलनाथ शूकर पाटल: पाताल गांधारी 14 अनंतनाथ : सेही पीपल किन्वर वैरोटी 15 धर्मनाथ · वज्र दधिपर्ण किंपुरुष सोलता 16 शांतिनाथ हरिण नंदी. गरूड़ अनंतमति 17 कुंथुनाथ. छाग तिलक गंधर्व मानसी 18 अरहनाथ तगरकुसुम आम्र कुबैर महामानसी 19 मल्लिनाथ कलश. कंबेली (अशोक) वरुण जया 20 मुनिसुव्रताथ कूर्म - चम्प भ्रकुटि विजया 21 नमिनाथ . उत्पल बबुल गौमेध अपराजिता 22 नेमिनाथ शंख मेषशृंग पार्श्व बहुरूपिणी (अम्बिका) 23 पार्श्वनाथ सर्प धव मातंग कुष्माडी 24 महावीर . सिंह शाल गुह्यक पद्मासिद्धायिनी जैन प्रतिमाओं के विकास में भी सर्वप्रथम प्रतीक परम्परा ही मूलाधार है।
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