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________________ शोध-प्रबन्ध की मौलिकता - मालवा में जैनधर्म के ऐतिहासिक विकास, जैनकला, जैनतीर्थ, जैन वाड्मय, जैनाचार्य, जैन जातियां व गोत्र, जैनधर्म के भेद व उपभेद तथा मालवा के जैन शस्त्र भण्डारों का शोध-प्रबन्ध में विवेचन कर मालवा के इतिहास को जैनधर्म की अमूल्य देन प्रकट की गई है। अनेक कलात्मक अवशेष अनमोल धरोहर के रूप में सुरक्षित हैं। जिस सामग्री का अद्यावधि अभाव था उसकी पूर्ति इस शोध-प्रबन्ध के माध्यम से करने का प्रयत्न किया जा रहा है। ___ मैं अपने गुरुवर इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व के ख्याति प्राप्त विद्वान श्रद्धेय डॉ.भगवतशरणीजी उपाध्याय, आचार्य एवं अध्यक्ष, प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूं। क्योंकि मैं जो कुछ भी प्रस्तुत कर रहा हूं वह. आपके ही सुयोग्य मार्गदर्शन का प्रतिफल है। इसी तारतम्य में पूज्य मुनि श्री अभयसागरजी का भी मैं कृतज्ञ हूं। यदि मुनिश्री के द्वारा मुझे समय-समय पर यथोचित सहायता नहीं मिलती तो शायद मेरा यह कार्य मार्ग में ही कहीं रूक जाता। डॉ.के.सी.जैन के प्रति भी मैं कृतज्ञता प्रकट करता हूं, क्योंकि उनकी कृपा के परिणाम स्वरूप ही मुझे श्रद्धेय डॉ.उपाध्यायजी का मार्गदर्शन सुलभ हुआ। मेरे अनन्य मित्र एवं ज्येष्ठ भ्राता के समान डॉ.ए.बी.शिवाजी को कैसे भुला सकता हूं? चाहे दिन हो या रात डॉ.शिवाजी मेरे साथ बराबर बिना सर्दी, गर्मी एवं वर्षा की चिंता किये भटकते रहे हैं। साथ ही आप ने मेरे नेराश्य को सदैव निरूत्साहित किया है। अतः यदि मैं उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट नहीं करता तो यह मेरी कृतघ्नता होगी। सिंधिया प्राच्य विद्या शोध प्रतिष्ठान, खाराकुआ उज्जैन जैन मंदिर का पुस्तकालय, दिगम्बर जैन मंदिर नयापुरा उज्जैन का शास्त्र भण्डार आदि के व्यवस्थापक महोदय एवं कार्यकर्ताओं का मैं आभार प्रकट करता हूं। साथ ही उन समस्त ज्ञात अज्ञात लेखकों का भी मैं आभारी हूं जिनकी पुस्तकों से मैंने अपने शोध प्रबन्ध में उदाहरण प्रस्तुत किये हैं। उनका उल्लेख अपना कर्तव्य समझ कर यथा स्थान किया है। संदर्भ सूची 1 विक्रम स्मृति ग्रंथ, पृष्ठ 544 . * पश्चिम उत्तर दिशा का सूचक। " पूर्व दिशा का सूचक। 2. Malwa in Transition, Page 3 3. Medieval Malwa, Page 2 4. मेघदूत, 16, पूर्व मेघ 5. मेघदूत, 30 6. विक्रम (महाभारत अंक, आषाढ़ श्रावण 2009, पृष्ठ 22 4 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004157
Book TitlePrachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTejsinh Gaud
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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