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________________ वज्रस्वामी की मृत्यु के 13 वर्ष बाद तक आर्यरक्षितसूरि युगप्रधान रहे। आर्यरक्षित का निर्वाण दशपुर में ही हुआ था। 10 . (6) आर्यवज्रस्वामी : जैन ग्रन्थों में आर्य वज्र का नाम बड़े आदर से लिया गया है। "श्री दुसमा काल समण संघ माये" में दिये गये प्रथमोदय युगप्रधान पट्टधर ये बताये गये हैं और लिखा है कि उन्होंने आठ वर्ष गृहवास किया, 44 वर्ष व्रतपर्याय पाला, 36 वर्ष युगप्रधान रहे और इस प्रकार 88 वर्ष 7 मास की आयु बितायी। भगवान महावीर के 548 वर्ष पश्चात इनका निधन हआ। 12 जैन ग्रन्थों में सर्वत्र आर्यवज्र का जन्मस्थान तुम्बवन बताया गया है। जैन ग्रन्थों में यह स्पष्ट उल्लेख है कि तुम्बवन अवंति जनपद में था। अवंन्ति के सम्बन्ध में हेमचन्द्राचार्य ने अभिधान चिंतामणि में लिखा है: ------"मालवा स्युखन्तयः (भूमिकांड श्लोक 22) ऐसा ही उल्लेख अमरकोश में भी है। वैजयंती कोश में आता है। ------ दशार्णस्युर्वेदियारा मालवास्युवन्तयः (भूमिकांड-देशाध्याय श्लोक 37) वैजयंतीकोश मालवा स्युखन्तयः (अमरकोश द्वितीयकांड भूमिवर्ग श्लोक 9) .. तात्पर्य यह हुआ कि तुम्बवन अवंति जनपद में था। तुम्बवन एवं अन्यान्य प्रमाणों के आधार पर जैनाचार्य विजयेन्द्रसूरीश्वर ने तुम्बवन की समता गुना जिले के वर्तमान तूमैन से की है। तूमैन जैनधर्मावलम्बियों का तीर्थस्थान भी माना जाता है। वज्रस्वामी के पिता धनगिरि इस तुम्बवन के रहने वाले थे और तुम्बवन में ही आर्यवज्र का जन्म हुआ था। इनका चरित्र परिशिष्ट पर्व सर्ग 12, उपदेशामला सटीक (207-214), प्रभावकचरित (3-8), ऋषिमंडल प्रकरण (192-2, 199-1), कल्पसूत्र सुबोधिका टीका आदि ग्रन्थों में मिलता है। आर्य वज्र के पिता का नाम धनगिरि था। उनके लिये इवभपुत्र लिखा है। इभ शब्द का अर्थ हेमचन्द्र ने देशीनाममाला (प्रथम वर्ग 1 श्लोक 79) अभिधान चिंतामणि में लिखा है, इभ्य आह्यो धनीश्वरः (मर्त्यमांड-श्लोक 29) ऐसा ही उल्लेख पाइव लच्छीनाममाला में लिखा है अ उ ठा इभा घणिणो) में लिखा है।14 इभ और वणिया दोनों समानार्थक है। उनका गोत्र गौतम लिखा है। धनगिरि धर्मपरायण व्यक्ति थे। जब उनके विवाह की बात उठती तो वे कन्यावालों को कह आते थे कि मैं तो साधु होने वाला हूं, पर धनपाल नामक एक श्रेष्ठि ने अपनी पुत्री सुनन्दा का विवाह धनगिरि से कर दिया। अपनी पत्नी को गर्भवती |138 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004157
Book TitlePrachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTejsinh Gaud
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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