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________________ पर्याप्त बाद के हैं। इस प्रकार के अधिकांश ग्रन्थ आज गुजरात के शास्त्र भण्डारों की शोभा बढ़ा रहे हैं। मैं इस प्रकार के कुछ ग्रन्थों के नाम यहां देने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूं। यथा (1) त्रिषष्टियचरित्र दशमपर्व : इस ग्रन्थ की प्रशस्ति इस प्रकार है :- "संवत् 1324 वर्ष मार्गबदि 13 ......... श्रीमदुज्जय (जि) न्यां श्री महावीरचरित पुस्तकं सा देवसिहेन मातुः श्रोयो र्थ लिखापितम्" ... यह पुस्तक शांतिनाथ ज्ञान भण्डार खम्भात में विद्यमान है। . (20 श्री उपदेशमाला (सावचूरि) : "संवत् 1402.वर्ष श्रावण सुदि 12 शुक्रे श्री उपदेशमाला प्रकरणं लिखितं।।ह।। श्री अवंत्या महास्यावंपन्यास विनयानंद योग्य लिखित।।6।। श्री ।। श्री।। यह पुस्तक मुनि श्री हंसविजयजी के शास्त्रसंग्रह बड़ोदरा में है। (3) श्री सप्तशती : यह पुस्तक स्वयं के अध्ययनार्थ लिखी गई और श्री जैनसंघ ज्ञान भण्डार पाटण में उपलब्ध है। यथा (4) श्री कुमारपाल चरित्रम् : यह ग्रन्थ प्र. श्री कां.वि.सं. शा.सं. बड़ोदा में है। तथा संवत् 1648 के माह अषाढ़ बिदि 5 बृहस्पतिवार को उज्जैन में मुनि श्री आनंदसागरजी के अध्ययन हेतु लिखा गया था। _(5) श्री आबू तीर्थकल्प : यह ग्रन्थ आ. श्री वि.वी.सू.शा.मं. राधनपुर में संग्रहित है। प्रशस्ति इस प्रकार है: पंडित श्री 5 विनयरत्नजी पौत्र जेतरत्न लखितं उंझमध्ये वास्तव्य।। बौध ग्रन्थं सारानुसारेण तस्मात् जीर्ण पत्रान् ज्योतरत्न लिखितं संवत 1751 वर्ष माह 4 भौमे। शुभं भवतु। कल्याणमस्तु।। (6) श्री कल्पसूत्रम् (सोनेरी) : यह ग्रन्थ मु. श्री हंसविजयजी सं. शास्त्र संग्रह बड़ोदा के संग्रहालय में उपलब्ध है। संवत् 1522 में मालवा के तत्कालीन सुल्तान होशंगगौरी (हुसैनसाहि) के राज्य में पवनपुर नामक नगर में लिखा गया था। इसमें श्रीमाल जाति, खरतरगच्छ के आचार्य जिनभद्रसूरि व जिनचन्द्रसूरि आदि के उल्लेख के साथ ही महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह ग्रन्थ कायस्थ जाति के श्री पं.कर्मसिंहात्मज वैणीदास ने लिखा।' यथा संवत् 1522 वर्ष भाद्रपद सुदि 2 शुक्रे पवनपुरे श्री हुसैन साहि राज्ये। श्रीमाल ज्ञातीय सं. कालिदास धार्यया सें. हासिनी श्री विक्या पुत्रधर्मदास सहितया कल्पपुस्तकं लिषापितं। विहारितं च खरतरगच्छे श्री श्रीजिनभद्रसूरि पट्टालंकार श्री जिनचन्द्रसूरि राजा देशेन श्री कमल संजमोपाध्यायायानां। लिखितं च गोडान्वय कायस्थ पं.कर्मसिहात्मज वैणीदासने।। शुभं भवतु।। | 128 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004157
Book TitlePrachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTejsinh Gaud
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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