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________________ पर खूब आक्षेप किये गये हैं। एक पूरा परिच्छेद वेश्याओं के सम्बन्ध में है। जैनधर्म के आप्तों का वर्णन 28वें परिच्छेद में किया गया है और ब्राह्मणधर्म के विषय में कहा गया है कि वे उक्त आप्तजनों की समानता नहीं कर सकते, क्योंकि वे स्त्रियों के पीछे कामातुर रहते हैं, मद्य सेवन करते हैं और इन्द्रियांरुक्त होते हैं। अमितगति कृत श्रावकाचार लगभग 1500 संस्कृत पद्यों में पूर्ण हुआ है और वह 15 अध्याय में विभाजित है, जिनमें धर्म का स्वरूप, मिथ्यात्व और सम्यकत्व का भेद सप्त तत्व, पूजा व उपवास एवं बारह भावनाओं का सुविस्तृत वर्णन पाया जाता है। अंतिम अध्याय में ध्यान का वर्णन 115 पद्यो में किया गया है जिसमें ध्यान, ध्याता, ध्येय और ध्यानफल का निरूपण है। अमितगति ने अपने अनेक ग्रन्थों में उनके रचनाकाल का उल्लेख किया है। जिनमें वि.सं.1050 से 1073 तक के उल्लेख मिलते हैं। अतएव उक्त ग्रन्थों का रचना काल लगभग 1000 ई. सिद्ध होता है। इनके द्वारा रचित योगसार में 9 अध्यायों में नैतिक व आध्यात्मिक उपदेश दिये गये हैं।1० अमितगति ने संस्कृत श्लोकबद्ध पंचसंग्रह की रचना की, जो उसकी प्रशस्ति के अनुसार वि.सं.1073 में मसूरिकापुर (वर्तमान मसूदविलोदा जो कि धारा के पास है) नामक स्थान में समाप्त हुई। इसमें पांचों अधिकारों के नाम पूर्वोक्त ही हैं तथा दृष्टिवाद और कर्मप्रवाद के उल्लेख ठीक पूर्वोक्त प्रकार से ही आये हैं। यदि हम इसका आधार प्राकृत पंचसंग्रह को न माने तो यहां शतक और सप्तति नामक अधिकारों की कोई सार्थकता ही सिद्ध नहीं होती, क्योंकि इनमें श्लोक संख्या उससे बहुत अधिक है। किन्तु जब संस्कृत रूपान्तरकार ने अधिकारों के नाम दे ही रखे हैं, तब उन्होंने भी मूल और भाष्य पर आधारित श्लोकों को अलग-अलग रखा हो तो आश्चर्य नहीं। अमितगति की अन्य रचनाओं में भावना द्वात्रिंशतिका, आराधना सामयिक पाठ और उपासकाचार का उल्लेख किया जा सकता है।12 माणिक्यनंदी, जो दर्शनशास्त्र के तलदृष्टा विद्वान् थे और त्रैलोक्य नंदी के शिष्य थे, धारा के निवासी थे। इनकी एक मात्र वृति परीक्षामुख. नामक एक न्याय सूत्र ग्रन्थ है जिसमें कुल 277 सूत्र हैं। ये सूत्र सरल, सरस और गम्भीर अर्थ द्योतक है। माणिक्यनंदी ने आचार्य अकलंकदेव के वचन समुद्र का दोहन करके जो न्यायामृत निकाला वह उनकी दार्शनिक प्रतिभा का द्योतक है।13 इनके शिष्य प्रभाचन्द्र ने परीक्षामुख की टीका लिखी है जो प्रमेयकमल मार्तण्ड के नाम से प्रसिद्ध है। प्रमेयकमल मार्तण्ड राजा भोज के ही राज्यकाल में रचा गया। प्रभाचन्द्र के अन्य ग्रन्थों में न्याय कुमुदचन्द्र जैन न्याय का एक बड़ा प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता है। प्रभाचन्द्र कृत आत्मानुशासन तिलक, रत्नकाण्ड टीका, पंचास्तिकाय प्रदीप, प्रवचन सरोज भास्कर, समाधि [[113 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004157
Book TitlePrachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTejsinh Gaud
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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