________________
लिया हो श्रद्धापूर्वक, उसका चारित्र मोहनीय कर्म शीघ्र नष्ट हो जाता है। (पृ०
294) 3. कितने रूप बदले, परन्तु जिनरूप नहीं बदला । (पृ० 295) 4. कागजों के दिगम्बर कहीं दिगम्बर नहीं होते । (पृ० 292) 5. ये गणधर की गद्दी है, जिनवाणी की गद्दी है, इस गद्दी पर ज्ञानी! किसी जीव का
यशोगान नहीं करना । कर सको तो वीतराग जिनेन्द्र की वाणी का यशोगान
करना । (पृ० 290) 6. पहले भावों से भगवान् के पास जाना, फिर भावों से भगवत्ता की ओर बढ़ना।
(पृ० 288) 7. सुन! ये बाहर के यंत्र-मंत्र जब फेल हो जाते हैं, तब भगवान की वीतराग वाणी
का तंत्र प्रारम्भ होता है। (पृ० 287) 8. ये तंत्र, मंत्र, ज्योतिष वहीं काम आते हैं जहाँ पुण्य होता है। पुण्य नहीं है तो मंत्र
भी सिद्ध नहीं होते । (पृ० 277) सहायक ग्रन्थ1. आचार्य श्री भट्टाकलंक देव विरचित स्वरूप सम्बोधन ग्रन्थ पर आचार्य विशुद्ध
सागर जी महाराज विरचित ‘स्वरूप-देशना’ प्रवचन से सभी सूक्ति वाक्य संग्रहित हैं। प्रकाशक- अखिल भारतीय श्रमण सेवा समिति, प्रथम संस्करण
- 2011 2. आवश्यक निर्मुक्ति – आचार्य वट्टकेरह सम्पादक प्रो० फूलचन्द जैन प्रेमी,
प्रकाशक जिनफाउन्डेशन, नई दिल्ली-74
स्वरूप देशना विमर्श
69
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org