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________________ मज़बूरी के नाम पर बहाने भी चल रहे हैं। पंचमकाल के बहाने शिथिलाचार ही नहीं उन भ्रष्टाचार को भी प्रश्रय दिया जा रहा है जिनसे बचा सा सकता है। इस संदर्भ में आचार्य श्री की यह उक्ति अत्यन्त महत्वपूर्ण है जिसमें वे कहते हैं कि - ‘पंचमकाल यह नहीं कहता कि तुम हमारे नाम पर कुछ भी कर डालो और कहो कि पंचमकाल है। ' ( पृ० 30) वो आगे कहते हैं ‘ये पंचमकाल का दोष नहीं, ये शिथिलाचार का दोष है' (पृ० 30) नयी दिगम्बर मुनि मुद्रा को धारण करने वालों को आचार्य श्री का स्पष्ट संदेश है 'अपने साथ अपने को रख सको, तो मुनि बनने के भाव रखना, गैरो के साथ रहने के लिए मुनि बनना हो तो घर में रहना' । ( पृ० 30) इस प्रकार सम्पूर्ण ग्रन्थ में सैंकड़ों सूक्ति वाक्य भरे पड़े हैं। इन सूक्ति वाक्यों की यह विशेषता है कि ये चेतना को अन्दर तक झंकृत करते हैं। यदि इन सूक्ति वाक्यों को बैनर, पोस्टर, स्टीकर तथा घरों- मन्दिरों की दीवारों पर लिखवा - लिखवा कर प्रचारित प्रसारित किया जाये तो अवश्य ही जो भी जीव इन्हें पढ़ेगा उसके मिथ्यात्व का बंधन अवश्य ही ढीला पड़ेगा - ऐसा मेरा विश्वास है। मैं अंत में एक क्रांतिकारी सूक्ति वाक्य से अपनी इस चर्चा को यहाँ विराम देना चाहता हूँ जो हम सभी को सोचने पर मजबूर करती है "धर्म का नाश करके धर्म प्रचार की बात कही जाये, वह धर्म कैसा ?" ( पृ० 98) इसके अलावा भी कुछ प्रमुख सूक्ति वाक्य मैं यहाँ मात्र संगृहीत कर रहा हूँ जो हमें झकझोरने की सामर्थ्य रखते हैं। "कुछ अन्य महत्वपूर्ण सूक्ति वाक्य " 1. जिनको अभी लखने का समय नहीं आया, लिखना कहाँ से प्रारम्भ कर दिया ? ( पृ० 307) 2. जिसने वीतरागी भावलिंगी श्रमण के चरणों में एक बार भी भावपूर्वक सिर टेक -स्वरूप देशना विमर्श 68 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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