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आदसहावादण्णं सच्चित्ताचित्तमिस्सियं हवई
तं परदव्वं भणियं अवितत्थं सव्वदरसीहिं॥17॥ अर्थात् आत्मस्वभाव से भिन्न जो कुछ सचित्त (स्त्री-पुत्रादिक), अचित (धन-धान्यादि), मिश्र (आभूषण सहित मनुष्यादिक) होता है, वह सर्व परद्रव्य है, ऐसा सर्वदर्शी भगवान ने सत्यार्थ कहा है। यही बात परमात्म प्रकाश (113) में जोइन्दु ने भी कही है। बारस अणुवेक्खा (गाथा संख्या 108) की सर्वोदयी टीका में आचार्य विरागसागर जी ने कहा है कि अन्दर के विकार रागादि भावेकर्म के शरीरादिक नोकर्म तथा मिथ्यात्व व रागादि से परिणत असंयत जन भी परद्रव्य कहे जाते हैंरागादिभावकर्म ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म शरीरादि नोकर्म च बहिर्विषये मिथ्यात्वरागादि परिणतासंवृतनोऽपिपरद्रव्यं भण्यते। .
समयसार आत्मख्याति टीका (327) में आचार्य श्री अमृतचन्द स्वामी कहते हैं- परद्रव्य और आत्मतत्त्व का कोई भी सम्बन्ध नहीं है, तब फिर उनमें कर्ता - कर्म सम्बन्ध कैसे हो सकता है? और उसका अभाव होने से आत्मा के परद्रव्य का कर्तव्य कहाँ से हो सकता है? क्योंकि इस लोक में एक वस्तु का अन्य वस्तु के साथ सम्पूर्ण सम्बन्ध का ही निषेध किया गया है। इष्टोपदेश में आचार्य पूज्यपाद भी कहत हैं
गुरूपदेशादभ्यासात्संवित्तेः स्वपरान्तरम्। जानाति यः स जानाति मोक्षसौख्यं निरन्तरम्॥33॥ . अर्थात जो प्राणी गुरुपदेश से अथवा शास्त्राभ्यास से या स्वात्मानुभव से स्व एवं पर के भेद को जानता है, वही पुरुष सदा मोक्षसुख को जानता है।
व्यवहारनय से आत्मा कर्मों का कर्ता है, भोक्ता है और कर्मों से बंधता भी है। निश्चयनय से वह शुद्ध आत्मा ही है, वह उन (कर्मों) का कर्ता व भोक्ता नहीं है और वह कर्मों से बंधता भी नहीं है। बंधे हुए कर्म और कर्म-बन्ध के हेतु-ये सभी निश्चयनय से पर-द्रव्य रूप ही हैं, वे सभी आत्म-स्वभाव से विपरीत भाव वाले होते हैं।
स्वरूप देशना (पृष्ठ 9) में कहा है- जिसको वस्तु विवक्षा, व्यवस्था, वस्तु स्वतंत्रता का भान नहीं है, वही रो रहा है। छह द्रव्यों में आपके द्वारा कोई परिवर्तन नहीं है। जगत् का प्राणी राग-द्वेष ही कर पायेगा, लेकिन वस्तु व्यवस्था को भंग नहीं कर पायेगा । देशनाकार सम्बोधित करते हुए कहते हैं- जगत् के कर्ताओं! तुम जगत् का कुछ नहीं कर पाओगे, परन्तु जगत कर्तव्य भाव से आप अपनी पर्याय को जरूर विपरीत कर सकते हो । राग-द्वेष के ही कर्ता आप हैं, लेकिन वस्तु के कर्ता नहीं है। बहुत गम्भीर प्रश्न है जिसे तत्त्व की गहराईयों में प्रवेश समझने की आवश्यकता है।
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-स्वरूप देशना विमर्श
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