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________________ ‘स्वरूप देशना' में प्रकाशित हो रहा है। वस्तुतः स्वरूप देशना' तत्व निर्णय की सर्वांगीणता का साकार स्वरूप है। इसके बिना अकेले रूप में अध्यात्म का अभ्यास असंभव है। यहाँ हम विभिन्न दृष्टियों से स्वरूप देशना' के उपर्युक्त स्वरूप में तत्व निर्णय में न्याय शास्त्र की उपयोगिता पर दृष्टिपात करते हैं। 1.आगम पारम्परिक दृष्टि से देशना का अवतरण: ज्ञातव्य है कि दि० जैन आम्नाय या निर्ग्रन्थ श्रमण परम्परा में आद्य आचार्य कुन्दकुन्द के द्वारा रचित द्रव्यानुयोग रूप अध्यात्म ग्रन्थ समयसार, प्रवचनसार आदि में न्याय शास्त्र, जैन न्याया के बीज सर्वत्र दृष्टिगोचर होते हैं। उन्होनें दर्शनान्तर सांख्य, बौद्ध, वेदान्त, चार्वाक आदि की ऐकान्तिक मान्यताओं का उल्लेख व निरसन करते हुए अनेकान्त प्रमाण की प्रतिष्ठा की है। उन्हीं के शिष्य आ० उमास्वामी ने सम्यक ज्ञान की प्रमाण कोटि में स्वीकृति हेतु "प्रमाणनयैरधिगमः” सूत्र को स्थापित किया है। आगे चलकर उक्त जैन न्याय के पुरोधा आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने तत्कालीन परिस्थिति में जैन दर्शन-न्याय को विशेष रूप से प्रतिपादित और व्याख्यायित कर अन्य दर्शनों के साथ शास्त्रार्थों में विजय प्राप्त की | उनके बाद तत्व निर्णय में प्रमाण, नय, स्याद्वाद, अनेकान्त, प्रत्यक्ष-परोक्षता, सप्तमंगी, द्रव्यों के सत्-असत्, नित्य- अनित्य रूपों की सापेक्षता, हेयोपादेयता रूप आदि महनीय अपेक्षित विषयों की समष्टि प्रकट होती है। उनके आप्त मीमांसा, स्वयंम्स्तोत्र आदि ग्रन्थों की भित्ति पर ही हम तक पहुँचा हुआ तत्त्वज्ञान रूपी महल सुशोभित है। उनका निम्न श्लोक बड़ा मार्गदर्शक है तत्त्वज्ञानं प्रमाणं ते, युगपत्सर्वभासनम्। क्रमभावि च यज्ज्ञानं, स्याद्वादनयसंस्कृतम||101 || परम्परा में आगे चलकर बड़ी क्रान्ति, न्याय शास्त्र विषयक क्षेत्र में आचार्य अकलंक देव के उद्भट व्यक्तित्व के नेतृत्व में सातवीं शताब्दी में हुयी। जेनेतर दर्शनों, वैशेषिक, मीमासंक, नैयायिक, सांख्य, बौद्ध, चार्वाक आदि की प्रबलता के मध्य जैन दर्शन को उत्कृष्ट मान्य पद पर स्थापित करने के लिए आ० अकलंक देव ने प्रत्यक्ष, परोक्ष सम्यग्ज्ञान प्रमाण के विस्तार में स्वरूप देशना विमर्शJain Education International . . -13 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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