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तत्त्व निर्णय में न्याय शास्त्र की उपयोगिता: स्वरूप देशना के परिप्रेक्ष्य में
- शिवचरन लाल जैन, मैनपुरी
येनेदमप्रतिहतं सकलार्थतत्त्व
मंगलाचरण
भक्त्या तमद्भुतगुणं प्रणमामि वीर
मुद्योतितं विमललोचनेन ।
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येन स्वरूपसम्बोधं देशनारूपेण बोधितम् ।
मारान्नसमरगणार्चितपादपीठम् ॥
विशुद्ध सूरिमकलङ्क विशुद्ध्यर्थन्नमामितम्॥स्वोपज्ञ ॥
जिन्होंने निर्बाध रूप से निर्णीत सम्पूर्ण वस्तु तत्त्व को निर्मल केवल ज्ञान रूपी दृष्टि से प्रकाशित किया है उन नरामरों के समूह द्वारा जिनका पादपीठ पूजित है । ऐसे अतिशय अनन्त गुणों के धारी दिव्य देशनानायक भगवान महावीर को मैं प्रमाद हित होकर निरन्तर प्रणाम करता हूँ। जिनके द्वारा वचनामृत रूप देशना रूप से स्वरूप, शुद्ध आत्म तत्त्व का सम्बोधन किया गया है ऐसे विशुद्ध चारित्र से शुद्ध आचार्य अक़लंक देव को (पक्ष में आचार्य विशुद्ध सागर जी को) मैं अपनी विशुद्धि हेतु प्रणाम करता हूँ।
देशना : : तत्त्व निर्णय का साकार स्वरूपः
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आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज वर्तमान में ज्ञान ध्यान - तप में लीन आध्यात्मिक संत हैं । वे अपनी कुशाग्र एवं बलवती क्रियावान चर्या के सशक्त हस्ताक्षर हैं । अन्त........ मोक्षमार्गी भाव विशुद्धि रूप परिणति उनके व्यक्तित्व में स्पष्ट दर्पणायित होती है। उनका साहित्य और विशुद्ध व्याख्यान तत्व निर्णय के क्षेत्र में उत्कृष्ट मानदण्ड हैं। अनेकों देशना रूप जिनवाणी पुष्पों में सर्वज्ञ स्वयं के साथ परहित की झलक - ललक स्पष्ट प्रकट है। यही रूप न्याय शास्त्र की सविधि से जैन वाङ्मय में प्रसिद्ध भट्ट अकलंक देव आचार्य की महनीय कृति स्वरूप सम्बोधन पर इसके तत्व निर्णयात्मक न्याय के स्वात्मतन व परिवेशीय रूप में प० पू० आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज कृत
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-स्वरूप देशना विमर्श
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