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________________ अवर्णवाद करने से दर्शन मोहनीय कर्माश्रव होता है। अपनी पुण्योदय से प्राप्त की। लक्ष्मी को श्रीदेव, शास्त्र गुरु, जिनालय, जिनबिम्ब धर्मशालापाठशालादि 7 परम क्षेत्रों में लगाये । श्रुत में प्राप्त 2 प्रमाणों को भी आचार्यों की वाणी के रूप में श्रद्धा से स्वीकार करना ।पृ० 304-306 60. धर्मध्वंस के काल में अवश्य मुखर हों-जहाँ धर्म का विनाश, क्रियाओं का हनन हो रहा है सिद्धान्त का विप्लव होता हो वहाँ वस्तु तत्त्व के प्रतिपादन यथार्थता के प्रकाशनार्थ स्वयं ही वक्तव्य देना चाहिए । विद्वानगण भी पहले लखें फिर लिखें। 61. समसामयिक शंका समाधान (क) मयूर पिच्छिका- प्रतिबंध निवारण- अहिंसा महाव्रत की प्रतीक मयूर पिच्छिका संयम की अनिवार्य प्रतीक है और अहिंसात्मक पद्धति से ही पंखग्रहण स्वीकार करना चाहिए। (ख) संस्कृति में विकृति पर रोक- मयूर पिच्छिका वर्ष में एक बार ही बदलना चाहिए, न कि अनेक बार । (ग) मयूर पंख निर्दोष है न कि सदोष- सोदाहरण आचार्यश्री ने स्पष्ट किया है कि जिस प्रकार नाखून बढ़ने पर आप सहज रूप में स्वयं निकाल देते हो कष्ट नहीं होता उसी प्रकार मयूर सहज रूप से चोंच से निकालकर पंख छोड़ता है। पृ० 309 62. सापेक्षतया गजरथ से ज्ञानरथ बेहतर है- पूर्व के विद्वान हस्तलेखन से एक ग्रन्थ की कई प्रतियां कर देते थे। आज प्रकाशन की सुव्यवस्था है। करेंकरावें | विदिशा के सेठ सिताबलाल-लक्ष्मीचन्द्र जी गजरथ चलाने वाले थे। तभी वहीं के दूसरे सज्जन तख्तमल जी के प्रेरणा से उन्होंने गजरथ नहीं चलवाकर षटखंडागम का प्रथमबार प्रकाशन कर ज्ञानरथ चलवाया जो कि श्रेष्ठ कार्य है। पृ० 310 63. सोदाहरण व्रतपालनार्थ प्रेरणा "प्राणन्तेऽपि न भक्तव्यं गुरुसाक्षि श्रितं व्रतम । प्राणान्ततत्क्षणे दुःखं व्रत भंगो भवे-भवे ॥ 52 || सा० धर्मा० अर्थ-प्राणों का अन्त होने पर भी गुरु चरणों में की गयी प्रतिज्ञा भंग नहीं करना चाहिए क्योंकि प्राणान्त होने पर एक भव सम्बन्धी ही दुःख होगा किन्तु व्रत भंग करने पर भव-भव में दुःख होगा। धीवर ने निर्ग्रन्थ गुरु से ली प्रतिज्ञानुसार प्रथम मछली को 5 बार जाल में आने पर भी छोड़ दिया था अभय दान दिया और दृढ़तापूर्वक गुरू से ली प्रतिज्ञा का पालन किया ॥ पृ० 312 234 -स्वरूप देशना विमर्श Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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