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स्वरूप देशना 377,
अन्य ग्रंथोल्लेख- क्षत्रचूड़ामणि,1 (पृष्ठ 40), भक्तामरजी,2 पृ० 6, राजवार्तिक, पृ० 6, अष्टशती, पृ० 6, युक्त्यनुशासन 5 पृ० 7, पद्यपुराण6 पृ० 38, विद्यानुवाद पूर्व 7 पृ० 39, क्षपणासार 8 पृ० 50, कल्याणकारक 9 (आयुर्वेद) पृ० 40, भगवती आराधना 10 पृ० 51, मरणकंडिका 11 पृ० 51, महापुराण 12 पृ० 52; पद्मनंदि पञ्चविंशतिका 12 पृ० 55, सर्वार्थसिद्धि 14 पृ० 81, जैन सिद्धान्त प्रवेशिका 15 पृ० 81, पंचाध्यायी 16 पृ० 81, धवलाजी 17 पृ० 86, श्रीभूवलय 18 पृ० 118, तिलोयपण्णत्ति 19 पृ० 118, न्यायदीपिका 20 पृ0 129, कुरलकाव्य 21 पृ० 149, श्लोकवार्तिक 22 पृ० 184, प्रमेयकमलमार्तण्ड 22 पृ० 191; षटखंडागम 24 पृ० 266, रिष्टसार समुच्चय 25 पृ० 345, लघुतत्त्वविस्फोट 26 पृ० 358, जिनप्रवचन रहस्यकोष 27 पृ० 34, प्रतिक्रमणत्रयी 28 पृ० 392 अन्य काव्यादि ग्रंथ1. कवि भूधरदासजी- अन्यत्वअनुप्रेक्षा – आप अकेला ...........॥ स्वरूपदेशना पृ० 67 2. कवि जौहरीमल जी- आलोचना पाठ-एक ग्रामपति ......... || स्वरूपदेशना पृ०147 3. कवि दौलतराम जी-छहढाला- पुण्यपापफलमाहि............ || स्वरूपदेशना पृ० 315 __इस प्रकार सिद्ध है कि स्वरूप देशना में 32 + 28 +3= 61 ग्रंथों के संदर्भो के साथ आचार्य श्री ने अपना उत्कृष्ट चिन्तन प्रस्तुत किया है। जो कि एक अनुपम प्रस्तुति है। 5. कारिका विवेचनान्त एक अमृत सूत्र व अन्य समागत सूत्रावली___ आचार्य श्रीविशुद्ध सागर जी ने प्रस्तुत ग्रंथराज पर देशना व्यक्त करते हुए प्रत्येक कारिका विवेचनान्त में एक अमृत सूत्र दिया है- “आत्मस्वभावं परभाव भिन्न” अर्थात् आत्मा का स्वभाव परभावों से अत्यन्त भिन्न है। यह सूत्र आत्म/जीव द्रव्य की सत्ता को अन्य द्रव्यों से भिन्न दर्शाता है। इसी अन्तिम लक्ष्य की प्राप्ति हेतु सम्पूर्ण ग्रंथ की विषय प्रस्तुति है। यह सूत्र समग्र कृति में 32 बार आवृत्त हुआ है। यथा- कारिका क्रमांक/स्वरूप देशना पृ० - 01/21, 02/5, 02/51, 02/73, 03/84, 03/97, 03/114, 04/126, 04/138, 05/149, 06/160, 06/174,
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-स्वरूप देशना विमर्श
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