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________________ 07/187, 08/214, 09/226, 10/236, 10/247, 11/261, 11/275, 12/281, 12/150, 12/302, 13-14/316, 13-14/326, 15/336, 16/345, 17-18/356, 19-20/367, 21-22/378, 23-24/390 एवं 25-26/400 | इसके अतिरिक्त कुछ और भी सूत्र आचार्य श्री इस ग्रंथ में उद्धृत किये हैं जो निम्न प्रकार हैं1. “पिय धम्मो, दृढ़ धम्मो” (वट्टकेरस्वामी) अर्थ- प्रेम हो तो धर्म हो और दृढ़ता से हो । पृ० 03 2. “पटुसिंह नादे”– श्रेष्ठ पटुवक्ता को सिंह का नाद करना चाहिए | पृ० 7 3. "अवाक् विसर्ग वपुसा निरूपन्यं मोक्षमार्गः” – निर्ग्रन्थ मुनि का शरीर बिना बोले ही मोक्ष मार्ग का उपदेश देता है। पृ० 15 4. “जैनीवृत्ति स्वेच्छाचार-विरोधनी” जैनी की वृत्ति में स्वेच्छाचार नहीं होता। पृ० 29 5.“यो ग्राह्यो ग्राह्य नाद्यन्तः" आत्मा ग्राह्य है और अनंत काल तक रहेगा।पृ० 58 6. नैवाऽसतो जन्म सतो न नाशो” असत् का उत्पाद और सत का विनाश नहीं होता द्रव्य दृष्टि से ।पृ० 59 7. "किं सुन्दरं किं असुन्दरम्” इस लोक में कोई वस्तु सुन्दर/असुन्दर नहीं है। पृ० 75 8. "ज्ञानदर्शन तस्तस्मात्” आत्मा ज्ञान दर्शन की अपेक्षा चेतन है। पृ० 112 9:"अनशन स्वरूपोऽहम् चिद्रस रसायन स्वरूपोऽहम्” मैं आत्मा अनशन __ स्वभावी हूँ। चैतन्य रस रसायन स्वरूप मैं हूँ।पृ० 26 10. “पर्यायदृष्टि नरकेश्वरा, द्रव्यदृष्टि महेश्वरा” पर्याय दृष्टि नरकेश्वर होगें, . द्रव्यदृष्टि वाले महेश्वर/परमात्मा होगें।पृ० 289 11. “जिना देवा यस्य च असौजनाः जिन जिनके देव हैं वे जैन हैं। पृ० 292 12. प्रक्षीणपुण्यं विनश्यति विचारणं” जिसका पुण्य क्षीण हो जाता है उसका विचार भी क्षीण हो जाता है। पृ० 348 13."भवधृयभद्रोऽपि समन्तभद्रः" आपके पादमूल में अभद्र भी समन्तभद्र हो जाता है।पृ० 373 14."आयरिय पसादो विज्झामतंसिझंति” गुरु/आचार्य के प्रसाद से विद्यामंत्र की सिद्धि होती है। पृ० 382 स्वरूप देशना विमर्श -(221) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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