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________________ विरोधाभास अलंकारकारिका-2 “सोऽस्त्या सोपयोगोऽयं – काव्यात्मक ॥ ज्ञायक स्वभावी परम तत्व का स्वरूप कारिका-3 “प्रमेयत्वादि ........ चेतनात्मक || आत्म द्रव्य एक ही काल में चेतन अचेतन दोनों रूप कैसे? कारिका-4 “ज्ञानादिभिन्नोन ....... सोऽयमात्मेति कीर्तितः ॥ निर्विकार- चिदानंद एक स्वभाव पदरूप वह ज्ञान आत्मा से भिन्न है या अभिन्न? कारिका-5 “स्वदेह प्रमिताश्चायं............ न सर्वथा ॥ द्रव्य व ज्ञानापेक्षया आत्मा का स्वरूप। कारिका-6 “नाना ज्ञानस्वभाव ...... अनेकात्मको भवेत् ॥ एक ही आत्मा एक व अनेक कैसे है? कारिका-7 “नावकतव्यः स्वरूपाद्यैः.... वाचामगोचरः ॥ आत्मा सर्वथा अवक्तव्य है या वक्तव्य? कारिका-8 “स स्याद्विधिनिषेधात्मा..... विपर्ययात् ॥ सर्वथा भाववादी एवं अभाववादियों की अपेक्षा आत्मस्वरूप (स्याद्वाद सिद्धान्त की विशेष व्याख्या) कारिका-9 “इत्याद्यनेक धर्मत्वं...... स्वयमेव तु ॥” __ अनेक धर्मात्मक आत्मा से उन धर्मों का सद्भावपना कैसे? कारिका-10 “कर्ता यः कर्मणां...: मुक्तत्वमेव हि॥ .. त्रैकालिक धुवता, कर्तृत्वपना, भोक्तृत्वपना आदि रूप आत्मा की विभिन्न दशायें) कारिका-11 “सददृष्टि ज्ञान चरित्रमुपायः.... दर्शनमतम् ॥ शुद्धात्मोपलब्धि के उपाय कथन। । कारिका-12 “यथावद्वस्तुनिर्णितिः.....कथञ्चित्प्रमितेः पृथक || सम्यग्ज्ञान का स्वरूप कथन। कारिका-13-14 दर्शन ज्ञानपर्यायेषुत्तरोत्तर..... चारित्रमथवा परम ॥ ___ सम्यक् चारित्र स्वरूप कथनं। स्वरूपदेशना विमर्श 213 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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