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________________ विघ्नौघा प्रलयं यांति, शाकिनीभूत पन्नगाः। विषं निर्विषतां याति, स्तूयमाने जिनेश्वरे। 21 मंदिर में भगवान का अभिषेक पूजा करेंगे और वहाँ चबूतरे पर जाकर क्या करेगें? गंडा ताबीजों का युग चल रहा है। तंत्र-मंत्र की क्रियायें मुख्य हो गयी हैं, काल सर्प और ग्रह शांति के माध्यम से भय एवं भ्रम की स्थिति पैदा करके अर्थोपार्जन जारी है। आचार्य विशुद्ध सागर जी कहते हैं, ध्यान रखना, कौन किस को लक्ष्मी दे सकता है? कौन लक्ष्मी छीन सकता है? तेरा भाग्य है जो तुझे सब उपलब्ध हो रहा है। विश्वास रखना नारियल के फल में कोई जल भरने नहीं जाता, अपने आप आता है।जब तक पुण्य उदय है, संपत्ति अपने आप आती है। ध्यान रखना ये भूतों का नहीं, ये तो जिनशासन है, भूतनाथों का शासन है, उसकी शरण से भटकना नहीं। आचार्य विशुद्ध सागर जी ऐसे दुर्भागी अमंगलजनों के प्रति मंगलमय भावना करके उनके मंगल आचरण की भावना हर क्षण रखते हैं। मैं यही कहना चाहता हूँ कि जितना पुरुषार्थ एवं मन, वचन, काय की एकाग्रता दूसरों के जीवन में अमंगल करने में लगाते हैं, यदि वही पुरुषार्थ स्वयं के मंगल में लगायें तो काषायिक भावों के अभाव से परिणाम विशुद्धि की सुगंध हमारे जीवन को महका कर संयम एवं तपश्चरण की वृद्धि कर सम्यक् पथ निर्देशित करेगी। इस प्रकार आचार्य भट्ट अकलंक स्वामी ने स्वरूप देशना ग्रंथराज के मंगलाचरण में अष्टकर्म से मुक्त तथा ज्ञानादिगुणों से अमुक्त इस कथन द्वारा बुद्धि और विशेष गुणों का अभाव हो जाना पुरुष का मोक्ष है, यह नैयायिक-वैशेषिक की मान्यता है तथा आत्मज्ञान से भिन्न ही है वैशेषिक मान्यताओं का निराकरण हो जाता है। अक्षय' विशेषण से शून्यवादिता, नैरात्म्यवादिता और क्षण क्षयिकवादिता रूप मान्यताएं खंडित हुयीं। 'ज्ञानमूर्ति विशेषण द्वारा ज्ञान से आत्मा का हीनाधिक प्रमाणपना निराकृत हुआ । ‘परम’ विशेषण द्वारा आत्मा की बहिरात्मा, अन्तरात्मा एवं परमात्मा इन तीनों दशाओं का कथन पूर्वक जिसप्रकार बहिरात्मा को अन्तरात्मा दशा आराध्य है, उसी प्रकार अन्तरात्माओं को परमात्मा दशा की आराध्यता का मार्ग प्रतिपादित करके संसारी जीव को सिद्धत्व का मार्ग प्रशस्त किया है। (210) -स्वरूपदेशना विमर्श Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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