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परनिंदा गहो आलोचन का, फल क्या होता ।
समझदार को एक इशारा ही काफी होता ॥ 14 ॥
अन्यान्य धर्मवालों का अपना-अपना अभिवादन है यथा - हिन्दुधर्मी दंडवत, पाँयलागूँ, प्रणाम, मुस्लिम धर्मी सलाम, ईसाई गुड मॉर्निंग कहते हैं। इसी प्रकार जिन शासन में चतुर्विध संघ को अभिवादन करते समय आचार्य, उपाध्याय, मुनियों को नमोऽस्तु, आर्यिकाओं को वंदामि, ऐलक, क्षुल्लक, क्षुल्ल्किा को इच्छामि, श्राविकों को जय जिनेन्द्र कहते हैं। अतः नमोऽस्तु केवल निर्ग्रन्थ दिगम्बर मुनिराज कोही कहा जाता है । अतः नमोऽस्तु शासन जिनशासन ही है।
जयवन्त रहे, जयवन्त रहे, जयवन्त रहे नमोऽस्तु शासन। जयवन्त रहे अरिहन्त सिद्ध आचार्य जयवन्त रहे । जयवन्त रहे उपाध्याय साधु श्रमण संस्कृति जयवन्त रहे।
स्वरूप देशना विमर्श
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