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________________ तो क्या? उनका मरण हो गया, हम तुमसे कहते। .. इसका उत्तर आप हमें दो, हम तुमसे कहते। "आचारसार” में “वीरनंदि", सिद्धान्त चक्रवर्ति। "जिनशासन” जयवंत रहे, जिनशासन अनुवर्ति ॥7॥ “सर्वज्ञ का शासन” "अर्हत् का", है समयसार टीका । "अमृतचंद्राचार्य ने जिसकी, कि अनुपम टीका । "आचारसार की अनुक्रमणिका, सुपार्श्वमती माता। “परीषह शतक" "आचार्य विमद" की है मंगल गीता ॥ 8 ॥. . जयवंत रहे “नमोऽस्तु शासन उल्लेख किया उनने। "तात्पर्य वृत्ति” "भगवत शासन' को कहा है “जयसेन” ने। "आचार्य समन्तभद्र स्वामी", "युक्तानुशासन” कहते। आचार्य श्री “जिनसेन” “सिद्धशासन है जिसे कहते ॥१॥ आचार्य श्री “जिनसेन”, “पूत शासन” "दिव्यादिशतक । और “पुण्य शासन” कहते हैं देख “महादि शतक । “शासन, व्यक्त” वृक्षादिशतक में वह हमको कहते। “महामुन्यादिशतक" में "क्षेमशासन है शब्द देते ॥१०॥ “शासन अमित” व “सत्य” असंस्कृतादि शतक में है। “शासन अमोघ” वृहदादि शतक में हमको देते हैं। “गम्भीर शासन” आदीपुराण में लिखा है गुरुवर ने। विशुद्ध शासन लिखा है, आदिपुराण जी में || 11 || "आचार्य भक्ति” में “पूज्यपाद” ने "जिनशासन” लिखा। गौतम स्वामी प्रतिक्रमण” में “जिनशासन” लिखा। शिलालेख “बेलगोला” में, वर्द्धमान शासन । एलाचार्य “वसुनंदी” जी ने, लिखा नमोऽस्तु शासन || 12 || उपाचार भेद है नौ बतलाये, आलाप पद्धति में। द्रव्य में गुण उपचार कहा आलाप पद्धति में। इस उपचार के तहत, नमोऽस्तु शासन जिन शासन । अर्थांतर हैं मीन मेख मत, करो अमनभावन || 13 ॥ यह सब अर्थांतर जानो, मन भ्रांति मत लाओ। देकर के उपदेश अनर्गल, भ्रम न फैलाओ। (194) -स्वरूप देशना विमर्श Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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