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भी होती हैं। आचार्य परम्परा से आये नमोऽस्तु शासन शब्द को अबोध प्राणियों ने प्रथमबार सुना तो ऐसा ही हुआ। जब काव्यनायक के ज्ञान प्रकाश में आये, स्थित हुए तब समझा नमोऽस्तु शासन तो जिनशासन का ही पर्यायवाची शब्द है। नमोऽस्तु शासन है क्या?
अनेकान्तौषध शास्त्रं तव नमोऽस्तु शासने । संसार तापशान्तये, मिथ्यात्त्ववादी विनाशनाये ॥ 1॥
अनेकान्त है परम औषधि, नमोऽस्तु शासन में। मिथ्यात्व का होता है विघटन, इस नमोऽस्तु शासन में । ? शांति दिलाती अनेकान्त दृष्टि इस शासन में । हे भगवन्! हो शांति मुझे, तब नमोऽस्तु शासन में ॥ 1 ॥ जैनेन्द्र व्याकरण पूज्यपाद, स्वामी हैं सूत्र रखते । "सिद्धिरनेकांतात " सूत्र से, निज दृष्टि रखते । जिन शासन में जो भी सिद्धि, हो उसको कहते । अनेकान्तात्मक होती, जिन ऐसा कहते ॥ 2 ॥ लोकोपचाराद ग्रहण सिद्धि, कातन्त्र सूत्र है यह । लोक प्रसिद्धि अनुसारिणी, दृष्टि रखता यह । जैसी प्रसिद्धि जिसकी हो जाती, वैसी ग्रहण करो । निक्षेप है उपचार अहो, इसको स्वीकार करो ॥ 3 ॥
मूलाचार की गाथा है जो, एक सौ इक्यावन । उस गाथा की टीका का कर लो, तुम अवलोकन | स्पष्ट लिखा नमोऽस्तु शासन, जयवंत रहे प्यारा । नमोऽस्तु प्रणाली जिन शासन की मौलिक अवधारा ॥ 4 ॥
अन्य धर्म अन्यान्य तरह से, अभिवादन करते ।
नमोऽस्तु दिगम्बर मुनि को केवल जिनधर्मी कहते । नमोऽस्तु शासन, जिनशासन अर्थान्तर है। इसमें नवीन पंथ जैसा, न कोई लांछन है ॥ 5 ॥
अतः
कहते तुम नमोऽस्तु शासन, जो मरण हो गया क्या ? जिन शासन जयवन्त से, जिनशासन का मरण है क्या ? पूज्य पुरुष जो वर्तमान व भूत भविष्यत के ।
नामों को ले ले कर हम, जयवंत रहें कहते ॥ 6 ॥
स्वरूप देशना विमर्श
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