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आत्मा के स्वभाव भाव का कथन कर आचार्य अकलंक देव ने आत्मा की सिद्धि करते हुए स्वरूप सम्बोधन ग्रन्थ में उल्लेख किया है कि
मुक्तामुक्तैकरूपो यः, कर्मभिः संविदादिना।
अक्षयं परमात्मानं, ज्ञानमूर्तिं नमामितं॥ अर्थात् आत्मा मुक्त भी है, आत्मा अमुक्त भी है और आत्मा मुक्तामुक्त रूप भी है।ज्ञानावरणादि आठ कर्मों से रहित होने से आत्मा मुक्त रूप है और ज्ञानादि गुणों से सहित होने से आत्मा अमुक्त है तथा दोनों गुण एक साथ होने से मुक्तामुक्त है। इसप्रकार से अविनाशी ज्ञान मूर्ति परमात्मा को नमन किया गया है।'
श्रमणाचार्य विशुद्ध सागर जी मुनिराज ने उक्त श्लोक के तृतीय पद “अक्षयं परमात्मानं” की विशेष व्याख्या करते हुए लिखा है कि आचार्य अकलंक देव ने आत्मा को नमन नहीं किया है, अपितु उन्होंने तो परमात्मा को नमन किया है। फिर प्रश्न किया, कैसे परमात्मा को? उत्तर दिया कि जिसका कभी क्षय नहीं होता है और जो गुण विहीन नहीं है। अर्थात् जो ज्ञान की मूर्ति है ऐसे अशरीरी सिद्ध परमात्मा को नमन किया है। परमात्मानं से यहाँ यह उल्लेखनीय है कि जो परमात्मा है वो तो आत्मा ही है, किन्तु जो आत्मा है वह परमात्मा नहीं है। जैनेत्तर दार्शनिकों का उक्त विषय में चिन्तन इससे भिन्न प्रकार का है
सांख्यदर्शन आत्मा को सदा कर्मों से रहित मानता है। नैयायिक दर्शन गुणविहिन को मोक्ष मानते हैं। बौद्ध दर्शन मोक्ष में आत्मा का अभाव ही स्वीकार करता है। इन सबका खण्डन करने के लिए आचार्य अकलंकदेव ने कहा है कि आत्मा अनादिकाल से मुक्त नहीं है, अपितु अनादि कालीन ज्ञानावरणीय द्रव्यकर्म, राग-द्वेषादि भावकर्म और शरीरादि नौ कर्म से छूटता है। बंध के कारण मिथ्या दर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग से रहित होकर सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र द्वारा कर्मों से छूटा है इसलिए मुक्त है। अनादिकाल से मुक्त नहीं है। कारणं ज्ञान, दर्शन., सुख आदि से युक्त है इसलिए अमुक्त है। ज्ञानादि गुणों का सिद्धों में अभाव नहीं है, अतः मुक्त और अमुक्त दोनों अवस्थाएं एक हैं। इसलिए मुक्तामुक्त एक रूप है।
अग्राह्य और ग्राह्य दृष्टि से आत्मा के स्वरूप का विवेचन करते हुए आचार्य अकलंक देव ने लिखा है कि आत्मा अर्थात् परमात्मा ज्ञान दर्शनात्मक उपयोगमय है तथा ‘क्रमाद्धेतुफला’ उक्त पद का अर्थ किया है कि परमात्मा क्रम से कारण और कार्य दोनों को धारण करने वाला है। इन्द्रियों के द्वारा जाना नहीं जाता है, इसलिए
स्वरूप देशना विमर्श
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