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अष्टमूल गुण इस प्रकार कहे गये हैं
मद्यमांसमधुत्यागैः सहाणुव्रतपंचकम्। ___ अष्टौ मूलगुणानाहुगृहिणां श्रमणोत्तमाः॥ र.क.श्रा. 66॥
मद्य, माँस, मधु के त्याग सहित पाँच अणुव्रतों को पालन करने वाला श्रेष्ठ गृहस्थ कहा गया है। मद्यं माँस क्षौद्रं पंचोदुम्बर फलानि यत्नेन। .
हिंसा व्युपरति कामैर्मोक्तव्यानि प्रथममेव॥ पु.सि.उ. 61॥ हिंसा के त्याग की कामना रखने वाले को सबसे पहले शराब, माँस, शहद, ऊमर, कटूमर, बड़, पीपल आदि पंच उदम्बरों का त्याग करना चाहिए। हिंसासत्यस्तेयादब्रह्मपरिग्रहाच्च बादर भेदात्।
द्यूतन्मांसान्मधाद्विरति गृहिणोष्ट सन्त्यमी मूलगुणाः||चा.सा. 30/4॥ स्थूल हिंसा, स्थूल झूठ, स्थूल चोरी, स्थूल अब्रह्म और स्थूल परिग्रह से विरत होना तथा जुआ, माँस और शराब का त्याग करना ये गृहस्थों के आठ मूल गुण कहलाते हैं।
किन्हीं आचार्य के मत में मद्य, माँस,मधु, रात्रि भोजन व पंच उदम्बर फलों का त्याग, देव वंदना, जीव दया करना तथा पानी छानकर पीना ये मूलगुण माने गये हैं।
श्रावक के उत्तर गुणों में कर्तव्य, क्रियायें आदि का समावेश होता है। पहले श्रावक के मुख्य कर्तव्यों के विषय में जानते हैं।
दाणंपूया मुक्खं सावय धम्मेण सावया तेण विणा। र.सा./11
चार प्रकार (औषधि, शास्त्र, अभय, आहार) का दान देना, देव शास्त्र गुरु की पूजा करना, श्रावक का मुख्य कर्तव्य है। इसके बिना वह श्रावक नहीं है। ऐसा रयणसार में आचार्य कुन्दकुन्द देव ने कहा है।
किसी-किसी आचार्य महाराज के द्वारा श्रावक के 4,5,6 आदि कर्तव्यों का कथन मिलता है। . .
दाणं पूजा सील मुववासो चेदि चउविहो सावयधम्मो- क.पा./82 दान, पूजा,शील और उपवास ये चार श्रावक के धर्म कहे गये हैं। गृहिणः पंच कर्माणि स्वोन्नतिर्देवपूजनम्।
बन्धु. साहाय्य मातिथ्यं पूर्वेषां कीर्तिरक्षणम्॥कुरल 5/3 पूर्वजों की कीर्ति की रक्षा, देव पूजन, अतिथि सत्कार, बन्धु-बान्धवों की सहायता और आत्मोन्नति ये गृहस्थ के पाँच कर्तव्य हैं। स्वरूप देशना विमर्श -
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