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अमृतचन्द स्वामी ने क्यों नहीं कहा?
कभी-कभी एक ही द्रव्य को देखकर दस व्यक्ति दस दृष्टि रखते हैं। दृष्टियाँ भिन्न-भिन्न होने पर भी वस्तु अभिन्नरूप से अनंतरूप है। जैसे कि एक पुरूष को दस व्यक्ति देख रहे हैं। एक मातुल कहकर पुकार रहा है, तीसरा जनक कह रहा है, चौथा बेटा कह रहा है, पाँचवा दादा कह रहा है, छठा नाना कह रहा है। ये पुरुष में भेद हैं कि देखने वाले की दृष्टि में भेद हैं।
क्या दृष्टि के भेद से पुरुष में वह धर्म नहीं? हमारे ज्ञानी लोग जो सदियाँ लगाकर, आचार्य का नाम लेकर ऐसा बोल देते हैं कि अमुक आचार्य का अभिप्राय ऐसा है, परन्तु वास्तविकता की ओर निहारें। ये आचार्य का अभिप्राय नहीं है, ये आचार्य ने सत्य को अपने ज्ञान से इतना जाना है। पुनः ध्यान दो, ज्ञानी! ये है लेखनी। पैन देखा आप सभी ने एक ही समय में। इसका वर्ण कैसा है? सफेद, पीला । बस, हमारे तत्त्व का निर्णय हो गया। वर्ण इसका जैसा है, वैसा ही है, लेकिन देखने वाले ने अपनी आँखों से क्षयोपशम से जो समीप थे उन्होंने इसे पीला देखा, किसी ने इसे सफेद देखा और जो दूर थे उन्हें काला दिखेगा।
भगवान् सर्वज्ञ से निकली वाणी आज तक, इतने लोगों की आँखों के सामनेसे निकल चुकी है हो सकता है कि किसी जीव ने अभिप्राय खोटा करके वस्तु का विपरीत कथन किया हो । कोई जरूरी नहीं है। आपके जो चश्में हैं, उनके जो नंबर हैं, ये आपसे कुछ कह रहे हैं। एक ही पदार्थ के एक समान होने पर भी, अलग-अलग नम्बर होने से, व्यक्तियों को दूरियों के अनुसार अलग-अलग पदार्थ दिखाई दे रहा है। तात्पर्य समझिये । भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण होने के उपरान्त कितनी दूरियाँ हो गयी, प्रत्यक्ष ज्ञान और परोक्ष ज्ञान में । जिसका जैसा क्षयोपशम था उसने जाना तो वस्तु को ही। आपने लेखनी को ही तो बताया, दूसरे पदार्थ का कथन नहीं किया कि आपने अपने क्षयोपशम के अनुसार कथन किया है। अभिप्राय आपका विपरीत नहीं था, लेकिन जितना जैसा देख सकते थे, जान सकते थे, वैसा ही तो बता रहे थे। इसलिए हे वर्द्धमान! आपकी वाणी मेरे पास आते-आते कितने रूप में गुजरी होगी। समझना वस्तु स्वरूप को । इसलिए किसी को असत्य कहने की चेष्टा नहीं कर रहे हैं, न करना । लेकिन यह समझना कि एक ही सभा में नाना पुरूषों ने एक ही द्रव्य को देखा, लेकिन एक ही द्रव्य को देखते-देखते कितने रूप दिखाई दिये, ये दृष्टि का दोष है। दोष कहूँ या ऐसा कहूँ कि ये क्षयोपशम की न्यूनता है। लेकिन हमारे वीतरागी आचार्यों ने जो भी कथन किया है, ये उनका अभिप्राय कहकर के, कभी-कभी अभिप्राय शब्द जोड़ने से मालूम क्या होता है? कि सत्यता
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-स्वरूप देशना विमर्श
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