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गौण दिखाई देती है। ये तो अमुक आचार्य का अभिप्राय है। ये तो उनका अभिप्राय है, तो क्या वैसी वस्तु नहीं? ऐसा नहीं कहना, कि अकलंक स्वामी का अभिप्राय ऐसा है। वस्तु व्यवस्था ऐसी है, अपने क्षयापशम से उसने जाना । जिस बात को कुन्दकुन्द स्वामी ने नहीं कहा और अकलंक स्वामी ने कह दिया तो क्या अकलंक स्वामी ने अन्यथा कह दिया? नहीं।
अकलंक स्वामी आत्मा को अवाच्य कह रहे हैं। आत्मा अवाच्य है। मैं क्या हूँ? जो मैं हूँ, वह – 'मै' शब्द भी नहीं जानता । जो 'मै' शब्द है, वह पुद्गल की पर्याय है. लेकिन जो मैं हूँ, वह चैतन्य हूँ।जो मैं हूँ उसे मै' शब्द भी नहीं जानता | व्याकरण के हजारों नियम शब्दवर्गणा के बारे में ही चर्चा कर सकते हैं, लेकिन ध्रुव आत्मा के ज्ञाता नहीं हैं। शब्द जो हैं पुद्गल की पर्याय हैं, उसको ही इधर से उधर कर पायेंगे, लेकिन आत्मा की ध्रुव सत्ता को कुछ भी करना नहीं जानते । एक नय को थोड़ा गहरे से सुन लो, फिर दूसरे की चर्चा | चाहे पाणिनी व्याकरण हो, चाहे हिन्दी व्याकरण हो, शाकटायन हो या जैनेन्द्र व्याकरण हो, वे सब जड़ शब्दों का व्याख्यान करने वाली हैं। चैतन्य का व्याख्यान करने वाली कोई व्याकरण नहीं है। जिन-जिन के मन में प्रश्न खड़े हो रहे हों, थोड़ा धैर्य से दबा कर रखना। एक भी व्याकरण आत्मा का वर्णन नहीं करती। जो शब्द हैं, वे शब्द हैं। पुदगल की पर्याय हैं, आत्मा की पर्याय नहीं हैं।
सद्दो बंधो सुहुमो, थूलो संठाणभेदतमच्छाया। उज्जोदादवसहिया, पुग्गलदव्वस्स पज्जाया॥16॥
-वृहद द्रव्यसंग्रह साथ में ब्रह्मस्त्र रखकर चलना चाहिए, नहीं तो ये ज्ञानी लोग परेशान करना शुरू कर देगें । अर्थात् भगवान् नेमिचन्द्र स्वामी कह रहे हैं बेटे! सुन!शब्द पुद्गल की पर्याय है, शब्द आकाश का धर्म नहीं । देखो, भाई! मैं कथन कर रहा हूँ, नयो मतार्थों को लेकर । इसका तात्पर्य आप यह मत समझा करो। मैं कथन कर रहा हूँ विषय को विस्तृत करके। कहीं किसी के मन में आ जाए कि महाराज कहीं मुझे लक्ष्य करके तो नहीं कह रहे हैं? हाँ, उस लक्ष्य में तू भी हो सकता है, कोई विकल्प नहीं करना, लेकिन तेरे ऊपर लक्ष्य नहीं है, वस्तु व्यवस्था ऐसी है। शब्द आत्मा की पर्याय नहीं है और शब्द आकाश की भी पर्याय नहीं है। .
इस वाच्य-अवाच्य के ऊपर माणिक्यनंदि परीक्षामुख' सूत्र के ऊपर आचार्य प्रभाचंद स्वामी ने प्रमेय कमल मार्तण्ड ग्रंथ, शब्द स्फोट नाम का जो सिद्धांत है उसका निरसन किया है। शब्द स्फोट एक दर्शन है। दर्शन और शब्द को ब्रह्म स्वरूप देशना विमर्श
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