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69. शरीर शुद्ध तो हो ही नहीं सकता। जिसमें नव मलद्वार स्रवित हो रहे हों, मल - -मूत्र का पिण्ड ही हो, वह शुद्ध कैसे हो सकता है ?
70. वैरागी को वैराग्य जीवित रखने के लिए चौबीस घंटे जीना पड़ेगा । मर-मर कर कभी वैराग्य की रक्षा नहीं हो सकती और वैराग्य की मृत्यु हो जाए तो चारित्र की कभी रक्षा नहीं हो सकती ।
71. चारित्र की रक्षा करने से पहले वैराग्य की रक्षा करो, नहीं तो ये जीवन ऐसा होगा, जैसे अभ्यास का जीवन होता है ।
72. गुड़ से मिश्रित दुग्ध को पीने वाला कालिया नाग कभी निर्विष नहीं होता, ऐसे ही अभव्य जीव कोटि-कोटि व्रतों का पालन कर ले फिर भी भव्य नहीं होता । 73. अनन्तानुबन्धी के मंद उदय में व्यक्ति को घानी में पेल दो तो भी चीं नहीं करता और संज्वलन के तीव्र उदय में बारह योजन का नगर जल जाता है । 74. जब भी जीव काषायिक भाव करेगा, तब पर का घात हो पाए या न हो पाए पर स्वयं का घात तो निश्चित होगा ।
75. वीतरागी मुनि एकेन्द्रिय तक की रक्षा के लिए पिच्छी रखते हैं । यदि धूप से छाया में या छाया से धूप में जाएं तो अपने शरीर का मार्जन कर लेते हैं ।
76. एक व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति को चांटा मारा और कहता है, भैया सुन, . तेरे कर्म का उदय था, मैं तो अकर्त्ता स्वभावी हूँ। मैं तो कुछ कर ही नहीं सकता हूँ। दूसरा कम समझदार नहीं था, उसने चार चाँटे लगाए और कहता है, 'हे मुमुक्षु ! आत्म स्वभावं परभाव भिन्नं ।
77. सहज भाव से बैठे-बैठे जो मस्तिष्क में चिंतन नहीं आ पाता, वह गणधर की गद्दी पर बैठने से आ जाता है। यही तो गद्दी की शक्ति है ।
78. हे ज्ञानी! जो लोक जिनदेव का नहीं हुआ तो अपना क्या होगा ?
79. आत्मा में ही शक्ति है बोलने की । भाषात्मक और अभाषात्मक । ये भाषा के दो भेद हैं। जो लिखी जाती है वह भाषा भाषात्मक है। जिसका लेखन नहीं होता, मात्र ध्वनि है, वह अभाषात्मक भाषा है।
80. ये पुण्य-पाप की व्याख्या है, सर्वत्र लागू होती है। जब तक मोक्ष न मिल जाए, तब तक पुण्य-पाप की व्याख्या लागू होगी ।
81. एक आत्मा ही ऐसी है जहाँ न पुण्य है न पाप है। उसका नाम अशरीरी सिद्ध परमात्मा है ।
स्वरूप देशना विमर्श
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