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________________ हैं कि संज्ञा लक्षण-प्रयोजन की दृष्टि से द्रव्य, गुण, पर्याय में भेद है, परन्तु अधिकरण की दृष्टि से एक हैं। 48. बहुत आरम्भ-परिग्रह किया है, तो तुम बड़े प्रेम से नरक चले जाओगे, चिंता मत करना और मायाचारी की है तो तुम पशु बन जाओगे। सम्यक् के साथ - जीवन जिया है, सराग संयम किया है, त्याग, तप किया है तो देव बन जाओगे। 49. अरहंत भगवान होते हैं, सिद्ध भगवान होते हैं, लेकिन भगवती आत्मा कभी नहीं होती, वह तो होती ही है। 50. अरहंत पर्याय प्रकट हुयी है, सिद्ध पर्याय प्रकट हुयी है। लेकिन आत्मा क्या प्रकट हुयी है? नहीं। 51. जब भी मोक्ष मिलेगा, तो भगवान आत्मा की आराधना से ही मिलेगा और भगवती आराधना के पास तभी पहुंचेगा जब अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु की आरधना करेगा। नहीं तो ज्ञानी भटक जायेगे बेचारे। 52. अहो मुमुक्षु! अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु ये भगवान आत्मा के समीप हैं। उनसे भगवान आत्मा का समाचार लेने के लिए उनका सम्मान करना पड़ता है, उनकी आराधना करनी पड़ती है, जैसे आगन्तुक से पत्नी का समाचार लेने के लिए पहले बच्चों के विषय में पूछते हैं। 53. सबसे बड़ा दरिद्री वह है जो मुनियों के गुण कहने से मौन लेता है और जो गुणी के गुण न कह पाये । क्यों नहीं कह पाता? क्योंकि ईर्ष्या से भरा है, बेचारा क्या करे? 54. समाधि चाहिए तो सम्मान छोड़ना पड़ेगा और सम्मान चाहिए तो समाधि छोड़नी पड़ेगी। समाधि चाहिए थी आचार्य ज्ञान सागर जी महाराज ने तो सम्मान छोड़ दिया। एक गुरु अपने शिष्य से कहे कि बेटा! मैं आपके संघ में समाधि करना चाहता हूँ। 55. वृद्धों के साथ रहने से अनुभव मिलता है, साधना बढ़ती है, ज्ञान मिलता है। इसलिए वृद्धों की सेवा कर लेना। इन बूढ़ों का अपमान मत करना । इन पके बालों से पकी सामग्री माँग लेना। 56. हिला दिया है, हैलो कहके । क्या हिला दिया? वात्सल्य हिला दिया, अनुराग हिला दिया, प्रीति हिला दी, राग बढ़ा दिया । इन मोबाइलों ने तो सब नष्ट कर दिया। 57. हर व्यक्ति की दृष्टि, हर व्यक्ति का सोच अपने क्षयोपशम से होगा। स्वरूप देशना विमर्श 127 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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