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________________ नही की, कि आपका नाम विदेशों में जाएगा कि नहीं जाएगा? आपको यह मालूम था कि हमारी अहिंसा स्वदेश से पलायन न कर जाए। 34. जैसे पानी की धार निम्न है। नदी का नाम निम्ना है, पानी नीचे की ओर चलता है, ऐसे ही कषाय नीचे की ओर ले जाती है, अपने को कभी नहीं दिखती । 35. कषाय की मंदता नहीं है, तो धर्मात्मा से दुःखी जगत् में कोई नहीं है । अतः कषाय की मंदता रखो । 36. पानी जैसे जीना! पानी बहता अवश्य है, परन्तु बीच में गड्डा आ जाए तो पहले उसे भरता है, फिर आगे बढ़ता है । परन्तु भूल वे कर लेते हैं कि बीच के गड्डे भरते नहीं हैं और आगे चले जाते हैं, लेकिन फिर कभी भी पीछे मुड़ना पड़ जाता है। 37. बेटे का पुण्य भी तेरे काम नहीं आएगा । तेरा पुण्य ही तेरे काम आएगा, तेरा पाप तेरे काम में आएगा । 38. सौ का नोट जेब कटने में गया तो रो रहा था और 1000 रुपये मंदिर की गोलक में डाल आया तो मुस्करा रहा था। छोड़ने में मुस्कराहट आती है । 39. ये भारत भूमि यंत्रों की प्रचारक नहीं है, ये निग्रन्थों की प्रचारक है। 40. भारत भूमि यंत्रों की नहीं मंत्रों की प्रचारक है। 41. नकुल और साँप एक साथ बैठ जाऐं, सिंह और गाय एक साथ बैठ जाएं, ये अरहंत के तंत्र का ही प्रभाव है । 42. अनेक-अनेक प्राणियों को एक करदे, यही तो वीतराग वाणी का तंत्र है। इसलिए जैन आगम में ग्रन्थ को तंत्र भी कहा जाता है । 43. समाधि तंत्र बिना प्रमाण के नहीं बोलता । तंत्र अर्थात् ज्ञानतंत्र अर्थात् आगम । 44. व्यक्ति जितना सात्विक होगा, पवित्र होगा, उसका मष्तिष्क भी उतना ही पवित्र होगा और विशद् काम करेगा । 45. कोष्ठ बुद्धि ऋद्धि, बीज बुद्धि ऋद्धि ये ऋद्धियाँ जो थीं, ये हमारे ऋषियों के मस्तिष्क के बड़े-बड़े कम्प्यूटर थे। 'तिलोयपण्णति में 64 ऋद्धियों का विषय वर्णित है। 46. आचार्य माणिक्यनंदी स्वामी कह रहे हैं, कि जिससे हित की प्राप्ति हो, अहित का परिहार हो, वही प्रमाण है । 47. वैशेषिक दर्शन गुण को गुणी से अत्यन्त भिन्नमानता है, परन्तु जैनाचार्य कहते 126 स्वरूप देशना विमर्श Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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