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________________ के लिए भूतवादी के पास जाओ और मोह को भगाने के लिए माँ जिनवाणी के पास आओ। 22. ये धर्मात्मा का दया भाव है, करूणा भाव है, परन्तु ध्रुव सत्य यह है कि समझना तो चाहिए, सधारना किसी को भी नहीं चाहिए। समझाने में अनुकम्पा भाव है और सुधारने में कर्ताभाव है। 23. समाज का व्यक्ति हो, चाहे मुनि संघ का सदस्य हो, दो बातें सीख लेगा तो कभी फेल नहीं होगा। पहली नीति और दूसरी बात रीति।। 24. सौधर्म इन्द्र के पास जितना वैभव होता है, ऊपर के स्वर्गों में उतना वैभव नहीं __ होता, लेकिन वे सुखी क्यों होते हैं? वे अहमिन्द्र होते हैं। न किसी को आज्ञा देते हैं,न किसी से आज्ञा लेते हैं, इसलिए सखी होते हैं। 25. जब अकौआ में महावीर बैठ सकते हैं, जब सिंह में महावीर बैठ सकते हैं. जब वैश्या में महावीर बैठ सकते थे, तो इनमें भी अनेक वीर बैठे होंगे। इसलिए किसी के प्रति अशुभ भाव मत लाइये। 26. साम्यदृष्टि जीव, तत्त्व ज्ञानी जीव शांत रहता है, चाहे वियोग हो रहा हो। 27. धर्म स्व सापेक्ष है, पर सापेक्ष नहीं है। हम अपने चितवन में स्वतंत्र है, अपने उपादान को पवित्र करने में स्वतंत्र है,पर के उपादान को बदलने में, मैं स्वतंत्र नहीं हूँ। अहो पिताजी! तुम बेटा कहने के लिए स्वतंत्र हो, परन्तु बेटा तुमसे पिताजी कह दे इसके लिए तुम स्वतंत्र नहीं हो। 28. यदि किंचित भी आपको द्रव्य दृष्टि समझ में आ रही हो तो आज से किसी भी जीव को गाली मत देना। मारीचि की पर्याय को जिसने गाली दी, उसने महावीर को गाली दी कि नहीं? 29. जो भोजन की इच्छा रखे, पूजन की इच्छा रखे, उनको मैं भगवान् नहीं मानता और जो भगवान् होते हैं वे पूजा की इच्छा नहीं रखते हैं। 30. यदि अपने बेटे को भी तूने गाली दी, तो विश्वास रखना, आपने भविष्य के . ___भगवान् को गाली दी। 31. मत किसी को हीन समझो। रोड़पति भी करोड़पति हो सकता है और करोड़पति भी रोड़पति हो सकता है। .. 32. वैभव मिलना इतना बड़ा पुण्य नहीं है, जितना कि निर्मल सोच मिलना पुण्य है। 33. धन्य हो वर्द्धमान आपको! त्रिकाल नमोस्तु, त्रिकाल नमोस्तु! आपने यह चिंता स्वरूप देशना विमर्श 125 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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