SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 12. यदि तुझे कुछ हासिल करना है तो राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय छोड़ो, विश्व की कोई विभूति है, तो ये अरहंत की देशना है। 13. एक व्यक्ति के पास एक खेत था, सो वो चिल्लाता था 'मेरा खेत- मेरा खेत । दूसरे ने खरीद लिया, तो वो चिल्लाने लगा मेरा खेत - मेरा खेत । खेत बोलता तो कहता, 'क्या अज्ञानियों की टोली बैठी है। मैं अपने स्थान से हटा नहीं, हिला नहीं, चला नहीं, मैं अपने में स्थिर हूँ, परन्तु ये ज्ञानी मुझे देख-देख कर कितने भूपति हो कर चले गये, परन्तु मैंने किसी को कभी स्वीकारा ही नहीं । • 14. सिद्ध को सिद्ध नहीं करना पड़ता, असिद्ध को सिद्ध करना पड़ता है। 15. निवाड़ मालवा में कपास न हो, तो आप फैक्ट्री में वस्त्र कहाँ से लाओगे? मिथ्यादृष्टि जीव नहीं होगे, तो सम्यग्दृष्टि जीव कहाँ से आयेंगे? मारीचि नहीं होता, तो महावीर कहाँ से मिलते आपको ? 16. उन रागियों से कह देना कि अभी मैं मुनि बनना तो चाहता हूँ लेकिन अभी घर की व्यवस्था देखता हूँ। अरे ज्ञानी ! तू स्वयं में व्यवस्थित हो जा, घर की क्या व्यवस्था देखेगा? घर की व्यवस्था किसने देखी ? मोक्षमार्ग व्यवस्थाओं का मार्ग नहीं है, मोक्षमार्ग तो व्यवस्थित रहने वालों का मार्ग है। 17. तू संकल्पी हिंसा कर रहा है, स्वर्ण के नाग बनाकर नदी में छोड़ रहा है। हे ज्ञानी! तुझे हिंसा का दोष नहीं लगेगा तो क्या होगा ? जब आटे के मुर्गे को चढ़ाने से दुर्गति हो सकती है, तो सोने के नाग चढ़ाकर भी दुर्गति होगी । 18. किसी ने कहा महाराज पंचमकाल है। आचार्य श्री ने कहा मुझे मालूम है पंचमकाल है। पंचमकाल में मोक्ष नहीं होता, पंचमकाल में चक्रवर्ती नहीं होते, पंचमकाल में केवली नहीं होते, पंचमकाल में ऋद्धिधारी मुनिराज नहीं होते, पंचमकाल में मनःपर्याय ज्ञान नहीं होता। पंचमकाल में बड़े देव नहीं आते, लेकिन पंचमकाल यह नहीं कहता, कि तुम हमारे नाम पर कुछ भी करो और को पंचमकाल है। 19. विश्वास रखना जब तक तेरे तीव्र असाता का उदय है, तब तक अरहंत भक्ति भी कुछ नहीं कर पायेगी । निधत्ति - निकांचित जैसे कर्मों का शमन करने वाली यदि कोई है, तो अरहंत भक्ति है। 20. भैया! कागज के फूलों में सेंट छिड़का जाता है, तो उसमें भी सुगन्ध आती है, लेकिन भोली आत्मा यह बताओ कि उन फूलों में सुगन्ध कितनी देर आयेगी ? 21. जब भूत को भगाने के मंत्र हैं, तो मोह को भी भगाने के मंत्र है। भूत को भगाने 124 • स्वरूप देशना विमर्श Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy